चमकी, छोटी सी चमकीली चिड़िया, हमेशा ऊंचे नीले आसमान को निहारती रहती थी। पेड़ों की टहनियों पर बैठकर, वह दूर-दूर तक फैले बादलों को देखती और सोचती, "काश मैं भी उतनी ऊंची उड़ पाती!"

उसका दिल आसमान छूने की तड़प से भर जाता। वह पंख फैलाकर पेड़ से पेड़ उछलती, हवा में तैरने का अभ्यास करती। मगर हर बार जमीन से कुछ ही ऊपर जा पाती, फिर वापस लौट आती।

एक दिन, चमकी झील के किनारे फुदक रही थी। सूरज की किरणें पानी पर चमक रही थीं। अचानक, उसने झील के साफ पानी में चंचल मछली, सोना, को देखा। सोना हल्के से पानी में लहरा रही थी, मानो नाच रही हो।