हृदय का सफर: एक कहानी दोस्ती, त्याग और कर्म की

शिवालय के आंगन में बैठी मीरा की उम्र भले कम थी, लेकिन उसकी आँखों में दुनिया का गहरा अनुभव बसा था। उसके सामने बैठा था राजा, उसका बचपन का साथी। उनकी दोस्ती गाँव के खेतों और नदी के तटों पर खिली थी, मिट्टी के खिलौनों और हँसी-खुशी से बनी। आज राजा शहर से लौटा था, पढ़ा-लिखा, सज-धजकर और मीरा को अब भी वही पुराना राजा दिख रहा था।

"शहर कैसा है राजा?" मीरा ने पूछा, आँखों में जिज्ञासा लिए।