चलता-फिरता पुस्तकालय! रिक्शा वाला राहुल

दिल्ली की व्यस्त सड़कों पर हजारों रिक्शे दौड़ते थे, उनकी खनखनाहट शहर का एक अलग ही संगीत बनाती थी। इन रिक्शों में से एक रिक्शा चलाता था राहुल। उम्र के बावजूद चेहरे पर एक चमक और आंखों में एक खास सपना लिए राहुल यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाता था।

राहुल सिर्फ रिक्शा चलाने वाला ही नहीं था, बल्कि चलता- फिरता पुस्तकालय भी था। उसके रिक्शे में पीछे की सीट पर हमेशा किताबें सजी रहती थीं। यात्रियों का इंतजार करते समय वो किताबें पढ़ता और सफर के दौरान कभी-कभी यात्रियों से किताबों के बारे में बातें भी करता था।