साहित्य, संगीत और सूफीवाद के अमर सितारे: अमीर ख़ुसरो - जीवन परिचय और अमर योगदान

अमीर ख़ुसरो, जिन्हें "तूती-ए-हिंद" के नाम से जाना जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक, कवि, संगीतकार और सूफी थे। इस लेख में हम अमीर खुसरो के जीवन, उनके साहित्यिक योगदान और उनकी सांस्कृतिक विरासत के बारे में जानेंगे।

साहित्य, संगीत और सूफीवाद के अमर सितारे:...

अमीर ख़ुसरो का जन्म 1253 में उत्तर प्रदेश के एटा जिले के पटियाली नामक स्थान पर हुआ था। उनका पूरा नाम अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरो था, लेकिन वे अमीर ख़ुसरो के नाम से अधिक प्रसिद्ध हुए। वे एक महान सूफी कवि, संगीतकार, विद्वान और सैनिक थे। उनके पिता तुर्क मूल के थे और मां भारतीय, जिससे ख़ुसरो के व्यक्तित्व में दोनों संस्कृतियों का मेल दिखता है।

अमीर ख़ुसरो को ‘तूती-ए-हिन्द’ यानी 'भारत का तोता' कहा जाता था, क्योंकि उनकी वाणी में अत्यधिक मिठास और बुद्धिमत्ता थी। उन्होंने फारसी, हिंदी और अरबी भाषाओं में साहित्य रचा। उनके लेखन में शेर-ओ-शायरी, गीत और पहेलियों का विशेष स्थान है। ख़ुसरो ने संगीत के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें ख्याल और तराना जैसी संगीत शैलियों का जनक माना जाता है।

अमीर ख़ुसरो सूफी संत निज़ामुद्दीन औलिया के परम भक्त थे और उनकी शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे। उनका जीवन सूफीवाद के आदर्शों के प्रति समर्पित था। 1325 में अमीर ख़ुसरो का निधन हो गया और उन्हें दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के पास ही दफनाया गया। उनकी कृतियों और रचनाओं ने भारतीय संस्कृति और साहित्य को समृद्ध किया और वे आज भी याद किए जाते हैं।

अमीर ख़ुसरो का व्यक्तित्व बहुआयामी था और उनकी जीवन यात्रा कई असाधारण पहलुओं से भरी हुई थी। वे न केवल एक कवि और संगीतकार थे, बल्कि एक सैन्य योद्धा और राजकवि भी थे। ख़ुसरो का जीवन 13वीं और 14वीं शताब्दी के दिल्ली सल्तनत के सबसे महत्वपूर्ण समय में बीता, जब भारत में विभिन्न राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन हो रहे थे।

1. सैन्य जीवन:

अमीर ख़ुसरो ने कई युद्धों में भाग लिया और दिल्ली सल्तनत के विभिन्न सुल्तानों के अधीन काम किया। उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी, जलालुद्दीन खिलजी और ग़यासुद्दीन तुगलक जैसे सुल्तानों के दरबार में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। ख़ुसरो की सैन्य सेवाएँ उन्हें एक सुलझे हुए योद्धा और रणनीतिकार के रूप में भी पहचान दिलाती हैं।

2. दिल्ली सल्तनत का राजकवि:

अमीर ख़ुसरो ने अपनी कविताओं और रचनाओं के माध्यम से दिल्ली सल्तनत के दरबार में विशेष स्थान पाया। वे सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के अत्यधिक प्रिय थे और अलाउद्दीन ने उन्हें "ख़ुसरो-ए-हिंद" यानी "भारत का ख़ुसरो" की उपाधि से सम्मानित किया। उन्होंने सल्तनत के इतिहास और विजय की कहानियों को अपनी रचनाओं में उकेरा।

3. भाषा और साहित्य में योगदान:

ख़ुसरो ने हिंदवी (प्राचीन हिंदी) को अपनी कविताओं में प्रमुखता से उपयोग किया और इसे एक साहित्यिक भाषा के रूप में विकसित किया। उन्होंने अपने समय की प्रचलित भाषाओं फारसी और हिंदी के मेल से एक नई साहित्यिक शैली का निर्माण किया, जिसे आज 'रेख्ता' कहा जाता है। यह शैली बाद में उर्दू भाषा के विकास का आधार बनी।

4. सूफीवाद में योगदान:

अमीर ख़ुसरो की सूफी परंपरा में गहरी आस्था थी। वे निज़ामुद्दीन औलिया के शिष्य थे और सूफी संत के प्रति उनके प्रेम और सम्मान ने उनकी रचनाओं में आध्यात्मिकता और ईश्वर भक्ति को प्रमुखता दी। ख़ुसरो के भक्ति गीत और कव्वालियाँ उनके सूफी विचारधारा की गहराई को दर्शाती हैं।

5. तकनीकी और नवाचार:

ख़ुसरो ने संगीत और साहित्य में कई तकनीकी नवाचार किए। उन्होंने 'सतार' (सात तारों वाला वाद्य यंत्र) और 'तबला' जैसे वाद्य यंत्रों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साथ ही, उन्होंने 'तबला' को पखावज से अलग करते हुए इसे एक स्वतंत्र वाद्य के रूप में स्थापित किया।

6. शब्दों का खेल:

अमीर ख़ुसरो की प्रतिभा केवल उनकी कविताओं में ही नहीं, बल्कि उनके द्वारा बनाए गए पहेलियों, मुकरियाँ और दोहे में भी दिखती है। उनकी पहेलियाँ और मुकरियाँ आज भी भारत और पाकिस्तान में अत्यधिक लोकप्रिय हैं और बच्चों से लेकर बड़ों तक में एक सांस्कृतिक खेल के रूप में प्रचलित हैं।

7. प्रभाव और विरासत:

अमीर ख़ुसरो की रचनाएँ और संगीत भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी कविताएँ, ग़ज़लें और संगीत ने मुग़ल काल से लेकर आधुनिक भारत तक की कला और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला। ख़ुसरो की रचनाओं को संगीत के साथ जोड़कर कई शताब्दियों से गाया जाता रहा है और उनकी कविताओं में एक दिव्य आभा है जो आज भी लोगों को आकर्षित करती है।

अमीर ख़ुसरो का जीवन और कृतित्व एक ऐसा संगम है, जिसमें भारतीय और फारसी संस्कृतियों का मेल, आध्यात्मिकता और संगीत का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है। उनकी रचनाएँ केवल साहित्यिक धरोहर नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास का अटूट हिस्सा हैं।

अमीर खुसरो की प्रसिद्ध रचना

अमीर ख़ुसरो की रचनाएँ भारतीय साहित्य और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी लेखनी ने फारसी, हिंदी और अरबी भाषाओं को समृद्ध किया। उनके कुछ प्रमुख और प्रसिद्ध कृतियों का विवरण निम्नलिखित है:

1. क़व्वाली:

अमीर ख़ुसरो को क़व्वाली की विधा का जनक माना जाता है। उन्होंने सूफी संगीत में क़व्वाली को प्रस्तुत किया, जो ईश्वर की स्तुति और भक्ति का एक माध्यम है। क़व्वाली में शेर-ओ-शायरी और संगीत का अद्भुत संगम होता है। उनकी रचित क़व्वालियों में "छाप तिलक सब छीनी", "निगाह-ए-कर्म" आदि बहुत प्रसिद्ध हैं।

2. तहफ़ीमात-ए-हिंद (तुफ़हतुस्सिग़र):

यह अमीर ख़ुसरो की शुरुआती रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने अपने बचपन और युवावस्था के अनुभवों को व्यक्त किया है। यह किताब फारसी भाषा में लिखी गई है और इसमें 90 कविताएँ शामिल हैं। इस कृति के माध्यम से अमीर ख़ुसरो ने अपने कवि बनने के सफर का वर्णन किया है।

3. ख़ालिक़बारी:

यह हिंदी और फारसी का पहला शब्दकोश माना जाता है। इसमें हिंदी के शब्दों को फारसी में अनुवाद किया गया है। ख़ालिक़बारी अमीर ख़ुसरो की बहुभाषी प्रतिभा का अद्भुत उदाहरण है। यह रचना भारत में भाषाई समन्वय की मिसाल है।

4. दीवान-ए-ख़ुसरो:

यह अमीर ख़ुसरो का संकलित काव्य संग्रह है, जिसमें उनकी विभिन्न कविताओं, ग़ज़लों और रुबाइयों का संग्रह है। इसमें उनकी लिखी कई प्रसिद्ध ग़ज़लें शामिल हैं, जैसे कि "ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफुल", "दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है" आदि। इन ग़ज़लों में उनके सूफी विचारों और प्रेम की भावना का वर्णन मिलता है।

5. अशिक़ा:

यह अमीर ख़ुसरो द्वारा लिखित एक रोमांटिक मसनवी है। इसमें लैल-ओ-मजनूं की प्रेम कथा का वर्णन है। अशिक़ा उनकी प्रसिद्ध मसनवियों में से एक है, जो प्रेम की महत्ता और उसकी दिव्यता को दर्शाती है।

6. नुह सिपिहर:

नुह सिपिहर का अर्थ है "नौ आसमान" और यह एक विस्तृत महाकाव्य है जिसमें उन्होंने अपने समय की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्थितियों का वर्णन किया है। इसमें कुल नौ हिस्से हैं, जिसमें हर एक में एक अलग विषय पर चर्चा की गई है।

7. गीति और पैमाना:

अमीर ख़ुसरो ने संगीत में भी कई नई शैलियों का आविष्कार किया। 'गीति' और 'पैमाना' उनकी रचनाओं में से हैं, जो विभिन्न रागों और धुनों के प्रयोग से बनीं हैं। उन्होंने तराना, ख्याल और कव्वाली जैसी संगीत शैलियों को लोकप्रिय बनाया।

8. अफ़ज़ल-उल-फवाइद:

यह अमीर ख़ुसरो द्वारा लिखित एक धार्मिक ग्रंथ है, जिसमें सूफी विचारधारा और इस्लामी शिक्षाओं का वर्णन है। इसमें उन्होंने निज़ामुद्दीन औलिया के विचारों को संकलित किया है।

अमीर ख़ुसरो की रचनाएँ केवल साहित्य के रूप में ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के धरोहर के रूप में भी देखी जाती हैं। उनके गीत, ग़ज़ल और कव्वाली आज भी विभिन्न मंचों पर गाए जाते हैं और उनकी रचनाओं का प्रभाव भारतीय उपमहाद्वीप के संगीत और साहित्य पर आज भी गहरा है।

अमीर ख़ुसरो के जीवन के अंतिम वर्ष

अमीर ख़ुसरो के जीवन के अंतिम वर्षों में उनकी सूफी विचारधारा और आध्यात्मिकता ने और गहराई पकड़ी। उन्होंने अपनी रचनाओं और संगीत के माध्यम से सूफीवाद के संदेश को फैलाने का कार्य जारी रखा। इस समय में, उनका ध्यान अधिकतर आध्यात्मिक और धार्मिक रचनाओं पर केंद्रित था, जिसमें उन्होंने ईश्वर भक्ति, आत्मा की शुद्धि और सूफी मार्ग के आदर्शों का वर्णन किया।

1. निज़ामुद्दीन औलिया के साथ संबंध:

अमीर ख़ुसरो का अपने गुरु हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के प्रति प्रेम और समर्पण उनके जीवन के अंतिम वर्षों में और भी गहरा हो गया। वे अक्सर अपने गुरु के पास समय बिताते थे और उनके उपदेशों से प्रेरणा लेते थे। ख़ुसरो ने अपनी कई रचनाएँ निज़ामुद्दीन औलिया को समर्पित कीं और उनकी शिक्षाओं को अपनी कविताओं और गीतों में समाहित किया।

2. अलाउद्दीन खिलजी के बाद:

अमीर ख़ुसरो ने अलाउद्दीन खिलजी के बाद ग़यासुद्दीन तुगलक और मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में भी अपनी सेवाएँ जारी रखीं। हालांकि, इस समय वे अधिकतर समय अपने साहित्यिक और आध्यात्मिक कार्यों में लगे रहे। उनका ध्यान धीरे-धीरे दरबारी जीवन से हटकर सूफी मार्ग की ओर केंद्रित हो गया।

3. जीवन के अंतिम वर्षों में साहित्य और संगीत:

जीवन के अंतिम वर्षों में अमीर ख़ुसरो ने अपनी रचनाओं में और अधिक आध्यात्मिकता और भक्ति को व्यक्त किया। उनकी कविताओं में ईश्वर के प्रति समर्पण, आत्मा की खोज और मानवता के प्रति प्रेम के भाव प्रकट होते हैं। उनकी ग़ज़लें, कव्वालियाँ और रुबाइयाँ इस समय में और भी लोकप्रिय हो गईं और वे सूफी संत के रूप में सम्मानित किए जाने लगे।

4. हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की मृत्यु:

1325 में, जब उनके गुरु हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का निधन हुआ, तो अमीर ख़ुसरो को गहरा आघात पहुंचा। उन्होंने अपने गुरु की मृत्यु के बाद "मरसिया" (शोक गीत) लिखा, जिसमें उनकी पीड़ा और दुख को व्यक्त किया गया है। ख़ुसरो के लिए यह समय अत्यंत कठिन था और उन्होंने अपने गुरु की कब्र के पास खुद को समर्पित कर दिया।

5. अमीर ख़ुसरो की मृत्यु:

हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की मृत्यु के कुछ महीनों बाद ही, 1325 में अमीर ख़ुसरो का भी निधन हो गया। उनका निधन दिल्ली में हुआ और उन्हें हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास ही दफनाया गया। उनके जीवन का यह अंतिम चरण उनके गुरु के प्रति असीम श्रद्धा और सूफी विचारधारा के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक था।

6. विरासत और प्रभाव:

अमीर ख़ुसरो की मृत्यु के बाद भी उनकी रचनाएँ और संगीत लोगों के दिलों में जीवित रहे। उनकी कविताएँ, ग़ज़लें और कव्वालियाँ आज भी विभिन्न मंचों पर गाई जाती हैं। उनके जीवन और कृतित्व ने भारतीय संस्कृति, साहित्य और संगीत पर अमिट छाप छोड़ी और वे सूफी साहित्य के अद्वितीय रचनाकारों में से एक माने जाते हैं।

अमीर खुसरो का साहित्य, संगीत और सूफीवाद में योगदान

अमीर ख़ुसरो का भारतीय साहित्य, संगीत और सूफीवाद में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण और व्यापक है। उनके योगदानों ने न केवल उनके समय में, बल्कि आने वाली सदियों में भी भारतीय संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला। आइए, उनके योगदानों के महत्व को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझते हैं:

1. साहित्य में योगदान:

हिंदवी भाषा का विकास: अमीर ख़ुसरो ने हिंदवी (जिसे अब हिंदी और उर्दू का पुराना रूप माना जाता है) में बहुत सी रचनाएँ कीं। उन्होंने फारसी और हिंदी के बीच एक पुल का निर्माण किया, जिससे हिंदवी साहित्य को समृद्धि मिली। उनकी रचनाओं ने हिंदी को एक साहित्यिक भाषा के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ग़ज़ल और रुबाई: ख़ुसरो ने फारसी ग़ज़ल और रुबाई को भारतीय संदर्भ में ढाला और इसमें स्थानीय भावनाओं और विचारों को प्रस्तुत किया। उनकी ग़ज़लें और रुबाइयाँ प्रेम, भक्ति और सूफी विचारधारा की गहराइयों को व्यक्त करती हैं।

पहेलियाँ और मुकरियाँ: अमीर ख़ुसरो ने हिंदी में पहेलियों और मुकरियों (एक प्रकार की कविता) की रचना की जो लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय हुईं। इन रचनाओं ने साहित्य को और भी जीवंत और दिलचस्प बनाया।

2. संगीत में योगदान:

नई संगीत शैलियों का आविष्कार: अमीर ख़ुसरो को भारतीय शास्त्रीय संगीत में कई नई शैलियों का जनक माना जाता है। उन्होंने ख़्याल, तराना और कव्वाली जैसी शैलियों का विकास किया, जो आज भी भारतीय संगीत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।

वाद्य यंत्रों का विकास: अमीर ख़ुसरो ने तबला और सितार जैसे वाद्य यंत्रों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। तबला का आविष्कार उनकी देन मानी जाती है, जो भारतीय संगीत का एक अभिन्न अंग बन चुका है।

सूफी संगीत: अमीर ख़ुसरो ने कव्वाली को लोकप्रिय बनाया, जो सूफी संगीत की एक प्रमुख विधा है। उनकी कव्वालियाँ आज भी सूफी महफिलों में गाई जाती हैं और लोगों को आध्यात्मिक आनंद प्रदान करती हैं।

3. सूफीवाद में योगदान:

सूफी काव्य: अमीर ख़ुसरो ने अपने गुरु हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के प्रति अपार भक्ति के साथ सूफी काव्य की रचना की। उनकी कविताओं में ईश्वर प्रेम, आत्मा की खोज और सूफी सिद्धांतों की गहराई का वर्णन किया गया है।

गुरु-शिष्य परंपरा: अमीर ख़ुसरो ने सूफी गुरु-शिष्य परंपरा को बहुत महत्त्व दिया और अपने जीवन के अंतिम वर्षों में पूरी तरह से अपने गुरु के प्रति समर्पित रहे। उनके जीवन में सूफी सिद्धांतों का गहरा प्रभाव था, जिसने उन्हें एक महान सूफी कवि बना दिया।

सूफी संदेश का प्रसार: अमीर ख़ुसरो ने अपनी रचनाओं और संगीत के माध्यम से सूफीवाद के संदेश को लोगों तक पहुँचाया। उन्होंने प्रेम, भाईचारे और मानवता के मूल्यों को अपने काव्य और संगीत के माध्यम से प्रसारित किया।

4. संस्कृति और विरासत पर प्रभाव:

भाषाई समन्वय: अमीर ख़ुसरो ने विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के बीच समन्वय स्थापित किया। उन्होंने फारसी, अरबी और हिंदी का ऐसा संयोजन किया जो उस समय के समाज को एक साथ लाने में मददगार साबित हुआ।

भारतीय-इस्लामी संस्कृति का समन्वय: ख़ुसरो के साहित्य और संगीत ने भारतीय और इस्लामी संस्कृतियों को आपस में मिलाने का कार्य किया। उनका काम भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी संस्कृति के गहरे प्रभाव का एक प्रतीक है।

विरासत और याद: अमीर ख़ुसरो की रचनाएँ और संगीत आज भी भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक धरोहर का एक अहम हिस्सा हैं। उनकी कव्वालियाँ, ग़ज़लें और भक्ति गीत धार्मिक और सांस्कृतिक महफिलों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुए हैं।

अमीर ख़ुसरो की रचनाओं में से कुछ अंश

अमीर ख़ुसरो की रचनाओं में कई ऐसे अंश हैं जो आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। यहाँ उनके कुछ प्रसिद्ध रचनाओं के अंश दिए गए हैं:

1. छाप तिलक सब छीनी:

यह अमीर ख़ुसरो की सबसे प्रसिद्ध कव्वाली में से एक है, जिसे उन्होंने अपने सूफी गुरु हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के प्रति समर्पण के रूप में लिखा था। इसके अंश निम्नलिखित हैं:

छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके,

प्रेम भटी का मदवा पिलाइके।

छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके।

  • व्याख्या: इस कव्वाली में अमीर ख़ुसरो अपने सूफी गुरु हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के प्रति असीम प्रेम और भक्ति का वर्णन कर रहे हैं। "छाप तिलक सब छीनी" का मतलब है कि उनके गुरु ने अपने प्रेम भरे दृष्टि से उनके सारे भौतिक और सांसारिक निशान मिटा दिए हैं। "प्रेम भटी का मदवा पिलाइके" का अर्थ है कि गुरु ने प्रेम के मदिरा (भक्ति रस) से उन्हें ऐसा मस्त कर दिया है कि अब वह केवल प्रेम और भक्ति में ही डूबे रहते हैं।

2. ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफुल:

यह अमीर ख़ुसरो की एक बहुत प्रसिद्ध ग़ज़ल है, जिसमें फारसी और ब्रज भाषा का मेल है। इसके अंश इस प्रकार हैं:

ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफुल, दुराए नैना बनाए बतियाँ।

कि ताब-ए-हिज्राँ न दारम ऐ जाँ, न लेहू काहे लगाए छतियाँ।

  • व्याख्या: यह ग़ज़ल में ख़ुसरो प्रेमी की वेदना को व्यक्त कर रहे हैं। "ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफुल" का अर्थ है कि मेरे दुखी हालात को अनदेखा मत करो और मुझसे नज़रें मिलाकर बातें करो। "कि ताब-ए-हिज्राँ न दारम ऐ जाँ" का मतलब है कि मैं अब इस विरह को सहन नहीं कर सकता, इसलिए अपने दिल से मुझको क्यों दूर रख रहे हो? इस ग़ज़ल में प्रेम की गहराई और विरह की पीड़ा को बहुत खूबसूरती से चित्रित किया गया है।

3. मन कुणतों मौला:

यह कव्वाली हज़रत अली के प्रति अमीर ख़ुसरो की श्रद्धा को प्रकट करती है। इस रचना का एक अंश है:

मन कुणतों मौला, फकीर आस्तान का।

हरदम क़रार में, मुझ पर है दौलत, मौला अली मौला।

  • व्याख्या: इस रचना में ख़ुसरो ने हज़रत अली को संबोधित करते हुए कहा है कि अगर आप मुझसे पूछते हैं कि मेरा मौला कौन है, तो मैं कहता हूँ कि मैं अपने गुरु के दर का एक फकीर हूँ और हर समय मैं उनके सानिध्य में रहकर संतोष और शांति महसूस करता हूँ। "मौला अली मौला" का प्रयोग हज़रत अली की स्तुति के लिए किया गया है, जिनको सूफी परंपरा में बहुत मान्यता दी जाती है।

4. काहे को ब्याही बदेस:

यह एक लोकगीत है जो एक बेटी की विदाई का वर्णन करता है। इसके अंश इस प्रकार हैं:

काहे को ब्याही बदेस रे लखिया बाबुल मोरा,

काहे को ब्याही बदेस।

  • व्याख्या: यह एक लोकगीत है जो एक बेटी की विदाई के समय गाया जाता है। इसमें बेटी अपने पिता से कहती है, "लखिया बाबुल मोरा", यानी "ओ मेरे प्यारे पिता", आपने मुझे इस परदेश (पराए घर) क्यों भेज दिया? यह विदाई गीत बेटी के दिल में उठ रहे विरह और अपने मायके के प्रति प्रेम को व्यक्त करता है।

5. पिहू पिहू बोले पपीहा:

यह अमीर ख़ुसरो की एक प्रसिद्ध पहेली है, जो बेहद सरल और सुंदर भाषा में लिखी गई है:

पिहू पिहू बोले पपीहा,

सदा रटै हरि नाम।

  • व्याख्या: इस पहेली में पपीहा (एक पक्षी) का जिक्र है, जो "पिहू पिहू" की ध्वनि करता है। पपीहा को आमतौर पर एक ऐसा पक्षी माना जाता है जो हर वक्त प्यासा रहता है और केवल स्वाति नक्षत्र में पड़ने वाली बारिश की बूंद पीता है। यहाँ पर, पपीहा का जिक्र इस रूप में किया गया है कि वह लगातार "हरि" (भगवान) का नाम लेता रहता है। इस पहेली में भक्त के उस भाव को दर्शाया गया है, जिसमें वह भगवान का नाम रटते रहता है, ठीक वैसे ही जैसे पपीहा "पिहू पिहू" करता रहता है।

6. आज़ रंग है री मामा:

यह रचना होली के त्योहार पर आधारित है और इसका इस्तेमाल सूफी महफिलों में भी होता है:

आज़ रंग है री मामा, रंग है री।

मोहे पीर पायो निज़ामुद्दीन औलिया।

  • व्याख्या: इस रचना में ख़ुसरो अपनी खुशी का इज़हार कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपने सूफी गुरु हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया को पा लिया है। "आज़ रंग है री मामा" का अर्थ है, "आज तो रंग (खुशी) का दिन है" और इस रंग के दिन में, मुझे मेरे पीर (गुरु) मिल गए हैं। यह रचना उत्सव और भक्ति का प्रतीक है, खासकर होली के समय।

7. सकल बन फूल रही सरसों:

यह रचना अमीर ख़ुसरो की मस्ती और प्रकृति के प्रति प्रेम को दर्शाती है:

सकल बन फूल रही सरसों,

अंबवा फूली, आमवा फूली, कोयल बोले डार-डार।

  • व्याख्या: इस रचना में ख़ुसरो वसंत ऋतु का वर्णन कर रहे हैं, जब पूरी वनस्थली (जंगल) में सरसों के फूल खिले हुए हैं। अंबवा (आम का पेड़) और आमवा (आम) फूले हुए हैं और कोयल पेड़ की शाखाओं पर बैठकर गा रही है। यह कविता प्रकृति के सौंदर्य और वसंत की खुशियों का एक जीवंत चित्रण है, जो मानव जीवन में नई ऊर्जा और उमंग का संचार करती है।

8. "ख़ुसरो बाजी प्रेम की, मैं खेलूँ पी के संग,

जीत गई तो पिया मोरे, हारी तो पिया के संग।"

  • भावार्थ: इस दोहे में अमीर ख़ुसरो ने प्रेम को एक खेल की तरह दर्शाया है। वे कहते हैं कि उन्होंने प्रेम की बाजी खेली और अगर वे इसमें जीतते हैं, तो उनका प्रिय (ईश्वर) उनका हो जाता है। लेकिन अगर वे हार जाते हैं, तो भी वे अपने प्रिय के संग ही होते हैं। इसका अर्थ यह है कि सच्चा प्रेमी चाहे किसी भी स्थिति में हो, वह हमेशा अपने प्रिय (या ईश्वर) के साथ होता है। यह प्रेम की गहराई और उसमें समर्पण की भावना को दर्शाता है।

अमीर ख़ुसरो की कुछ प्रसिद्ध पहेलियाँ और मुकरियाँ

अमीर ख़ुसरो ने अपने समय में कई प्रसिद्ध पहेलियाँ और मुकरियाँ रचीं, जो आज भी लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। ये रचनाएँ सरल होते हुए भी गहरे अर्थ रखती हैं और मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी हैं। आइए, कुछ प्रसिद्ध पहेलियाँ और मुकरियाँ देखते हैं:

प्रसिद्ध पहेलियाँ:

1. एक थाल मोती से भरा,

सबके सिर पर औंधा धरा।

चारों ओर वह थाल फिरे,

मोती उससे एक न गिरे।

उत्तर: आसमान (आकाश) और तारे।

2. ऐसी कौन सी चीज़ है,

जो हर रोज़ बढ़ती जाती है,

पर कभी कम नहीं होती?

उत्तर: उम्र।

3. हरी थी, कच्ची थी,  

मैं कुम्हार के पास गया।

आग में पकाया,  

लाल हो गया।

उत्तर: ईंट।

4. कच्चा धागा कच्ची गेठी,  

आँगन बैठी दादी-बेटी।

ना बेटी ना दादी,  

बताए कौन, कैसी पहेली?

उत्तर: चाँदी और सुई (जो धागा पिरोती है)।

प्रसिद्ध मुकरियाँ:

1. काहे को बिछड़ो बावरी,  

मैं तो रुठन से रुठी रे।

उत्तर: नींद।

2. रतन जड़ाऊ बैठी हूँ,  

मैं तो डूबी-डूबी रे।

उत्तर: अंगूठी।

3. झूला पड़ा पाताल में,  

मैं तो रसोई करूँ रे।

उत्तर: कुआँ।

विशेषता:

अमीर ख़ुसरो की पहेलियाँ और मुकरियाँ सरल शब्दों में जीवन की गहरी बातों को बयां करती हैं। उनकी रचनाएँ समाज की सादगी और ग्रामीण जीवन की वास्तविकताओं को दर्शाती हैं। इन पहेलियों और मुकरियों में छिपा हुआ ज्ञान और समझ आज भी लोगों को सोचने पर मजबूर कर देता है।

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