यह दोहा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित है। तुलसीदास जी एक महान संत और कवि थे, जिन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें सबसे प्रसिद्ध "रामचरितमानस" है। उनके दोहों और चौपाइयों में गहरे आध्यात्मिक और नैतिक संदेश होते हैं, जो भारतीय संस्कृति और समाज में आज भी प्रासंगिक हैं। यह दोहा भी उनकी शिक्षाओं और विचारों का प्रतिबिंब है, जिसमें गुरु, माता-पिता और ईश्वर की महत्ता का वर्णन किया गया है।

"मातु पिता गुर प्रभु कै बानी।