रामचरितमानस के रचयिता और अमर हिन्दी साहित्यकार! गोस्वामी तुलसीदास की जीवनी और प्रमुख दोहे
गोस्वामी तुलसीदास, एक महान कवि-संत, रामचरितमानस के रचयिता थे। उन्होंने रामकथा को अवधी भाषा में जन-जन तक पहुँचाया। उनकी भक्ति, साहित्यिक प्रतिभा और राम के आदर्शों के प्रति समर्पण ने उन्हें अमर बना दिया।

जीवनी Last Update Wed, 18 December 2024, Author Profile Share via
रामचरितमानस के रचयिता: तुलसीदास (1511-1623)
गोस्वामी तुलसीदास, जिनका जन्म 1511 में, कुछ मान्यताओं के अनुसार बांदा के राजापुर, तो कुछ के अनुसार एटा के सोरी गांव में हुआ था। राम भक्ति की आग उनके बचपन से ही धधकती थी, और यही ज्वाला उनकी रचनाओं में सदियों से जगमगा रही है।
तुलसीदास जी का जीवन अनोखा था। जन्म के समय उनके 32 दाँत थे और ये माना जाता है कि उन्होंने 'राम' शब्द बोला था। कुछ समय उनके बचपन का नाम रामबोला भी रहा। किंतु भाग्य के फेर से उन्हें अपने माता-पिता का प्यार नहीं मिला। परंतु, माता पार्वती ने उनकी रक्षा की, ऐसा माना जाता है। शिक्षा और ज्ञान की प्यास उन्हें काशी ले गई, जहाँ उन्होंने संस्कृत, वेद, पुराणों का गहन अध्ययन किया। उनकी प्रतिभा और भक्ति से प्रभावित होकर उन्हें "गोस्वामी" की उपाधि दी गई।
तुलसीदास जी का प्रेम सिर्फ भगवान राम के लिए ही नहीं था। उनकी विवाह रत्नावली से हुआ, पर कुछ समय बाद वो वैराग्य धारण कर संसारिक मोह त्याग दिए। उन्होंने अयोध्या, काशी, चित्रकूट जैसे तीर्थस्थलों की यात्राएँ की और राम कथा से जुड़े स्थानों को खोजा। उनकी लेखनी से 'विनय पत्रिका', 'गीतावली', 'कवितावली' जैसी अनेक रचनाएँ निकलीं, लेकिन उनकी चिरस्थायी कृति थी "रामचरितमानस"।
ब्रजभाषा की मिठास में डूबा "रामचरितमानस" सिर्फ महाकाव्य नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है। राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और रामभक्तों के चरित्रों के माध्यम से तुलसीदास जी ने धर्म, कर्तव्य, प्रेम, त्याग जैसे मूल्यों को जीवंत किया। उनकी चौपाइयाँ आज भी लोगों के हृदय को छूती हैं और जीवन का मार्गदर्शन करती हैं।
राम की कहानी को जन-जन तक पहुंचाने वाला सफर: तुलसीदास की रचनाएँ और योगदान
रामचरितमानस के अलावा, तुलसीदास जी ने कई रचनाएँ कीं, जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण हैं:
- हनुमान चालीसा: यह चालीसा संकटमोचन हनुमान की स्तुति है, जिसे आज भी लाखों लोग नियमित रूप से पढ़ते हैं।
- दोहावली: छोटे छंदों में लिखी यह रचना जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार प्रस्तुत करती है।
- विनय पत्रिका: भक्ति से ओत-पोत यह रचना ईश्वर से कृपा की याचना करती है।
- गीतावली: गीता के सार को सरल भाषा में प्रस्तुत करती है।
इन रचनाओं ने न केवल धर्म और दर्शन का ज्ञान फैलाया, बल्कि उन्होंने:
- हिंदी भाषा को समृद्ध किया: तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में खड़ी बोली और अवधी भाषा का प्रयोग किया, जिससे हिंदी को एक नई पहचान मिली।
- समाजिक सुधार का प्रयास किया: उन्होंने जाति-पाति भेदभाव का विरोध किया और समाज में समानता का संदेश दिया।
- रामलीला की परंपरा को मजबूत किया: रामलीला के आयोजन में उनकी सक्रिय भूमिका रही, जिससे आज भी रामकथा जीवंत हो उठती है।
तुलसीदास जी: कालजयी कवि और आदर्श
तुलसीदास जी सिर्फ एक कवि नहीं थे, वे संत, समाज सुधारक और आदर्श पुरुष थे। उनका जीवन धर्म के प्रति समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा और त्याग का उदाहरण है। उनकी रचनाएँ सदियों से लोगों को प्रेरित कर रही हैं। गोस्वामी तुलसीदास का नाम भारतीय साहित्य और संस्कृति के इतिहास में हमेशा अमर रहेगा।
तुलसीदास: प्रेरणा जगाने वाली चौपाइयाँ
गोस्वामी तुलसीदास की अमर कृतियों ने न सिर्फ साहित्य जगत को समृद्ध किया, बल्कि जीवन के विभिन्न आयामों पर सारगर्भित संदेश दिए। आज भी उनकी अनेक चौपाइयाँ प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। आइए, कुछ ऐसी ही चिरस्थायी चौपाइयों को देखें:
भक्ति की शक्ति:
"हे राम रावण दुर्बल जानि के, लंका जियै नहिं कोइ। भरोसे रामबल के बलवानि मन, अति अभिमानी सोइ।।" (रामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड)
अर्थ: इस चौपाई में तुलसीदास जी रावण के अहंकार को उजागर करते हैं। राक्षस राजा रावण अपने बल को ही सब कुछ समझता है और श्रीराम को कमजोर मानता है। वह ये नहीं समझता कि असली ताकत तो राम के धर्म और न्याय के साथ रहने में है। इसलिए ही उसे हार निश्चित है।
कर्म और भाग्य:
"कर्महीन जन भजहिं न भगवाना। जोग मुनिराज तप करहिं बिबाना।।" (रामचरितमानस, अरण्यकाण्ड)
अर्थ: यह चौपाई कर्म की महत्ता को बताती है। तुलसीदास जी कहते हैं कि केवल ईश्वर की भक्ति या ध्यान करने से ही मोक्ष नहीं मिलता। कर्म से जुड़े रहना भी जरूरी है। भले ही वह कर्म ज्ञान के साथ किया गया हो या सिर्फ भक्ति के लिए हो।
साहस और धैर्य:
"कायर भयभीत दीन दुखी लघु जिय लघु करम कराही। सूर बिरुद बल धीरज धर्म सत्य पराक्रम जमाही।।" (दोहावली)
अर्थ: इस चौपाई में साहस और धैर्य के महत्व को बताया गया है। तुलसीदास जी कहते हैं कि कायर और डरपोक व्यक्ति हमेशा छोटे-छोटे काम ही करते हैं, जबकि महान और वीर व्यक्ति साहस, धैर्य, धर्म, सत्य और पराक्रम से युक्त होते हैं।
दया और क्षमा:
"कबि जन बिचारि करन चहहिं, जग पर उपकार। पर दुःख सुख ब्यापार, नहिं देखहिं बेचार।। तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण। बिनु दया नर पशु समान, तास जीवत मरत समान।।" (दोहावली)
अर्थ: ये दोहे दया और क्षमा के गुणों को आगे बढ़ाते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि कवि या विद्वान लोग जगत का भला करना चाहते हैं, परंतु वे दूसरों के सुख-दुख को गौर से नहीं देखते। लेकिन उन्होंने यह नहीं समझा कि दया से बड़ा कोई धर्म नहीं है। जब तक शरीर में सांस चल रही है, दया का भाव बनाए रखना चाहिए। दया के बिना तो इंसान और पशु में कोई फर्क नहीं रहता।
सदाचार और मर्यादा:
"बिनु सत गुमानि नहिं कछु होइ। सत ही सब सुख कर, सत सब सोइ।।" (दोहावली)
अर्थ: यह दोहा सत्य के महत्व को बताता है। तुलसीदास जी कहते हैं कि बिना सत्य के कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। सत्य ही सभी सुखों का कारण है और वही सब कुछ है। इस चौपाई का अर्थ यही नहीं है कि सिर्फ बोलचाल में सत्य का पालन करना जरूरी है, बल्कि विचारों, कर्मों और जीवन के हर पहलू में ईमानदारी रखना भी जरूरी है।
ये कुछ चुनिंदा उदाहरण हैं। तुलसीदास जी की चौपाइयाँ जीवन के विभिन्न आयामों पर मार्गदर्शन करती हैं। उनकी रचनाओं का अध्ययन करना और उनका सार ग्रहण करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
गोस्वामी तुलसीदास जी का अमर संदेश
गोस्वामी तुलसीदास जी ने सदियों पहले जो संदेश दिए, वे आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी रचनाएँ हमें मानवता, धर्म, कर्तव्य और प्रेम का पाठ पढ़ाती हैं। उनके जीवन और कृतियों को याद रखना और सीखना हम सभी के लिए जरूरी है। वे हमें बताते हैं कि कैसे एक साधारण व्यक्ति भी अपने विचारों, कार्यों और रचनाओं के माध्यम से अमर हो सकता है।
क्या आप गोस्वामी तुलसीदास जी के अद्भुत जीवन और अमर रचनाओं से प्रेरित हुए? पर इतिहास ज्ञान की प्यास यहीं नहीं मिटती! भारतीय संस्कृति और साहित्य के कई और भी रत्न मौजूद हैं, जिनकी कहानियां आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी। महाराणा प्रताप के अदम्य साहस, मीराबाई की अनंत भक्ति, या फिर कबीरदास के विद्रोही स्वर को जानने के लिए उत्सुक हैं? तो इंतज़ार किसका! अगली बार हम आपको इतिहास के ऐसे ही एक अन्य महानायक की कहानी से रूबरू कराएंगे। तब मिलिएगा, नई कहानियों और प्रेरणा के साथ!
तुलसीदास जी के प्रमुख दोहे और उनके अर्थ :
1. तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक। साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक।
अर्थ: विपत्ति के समय आपके सच्चे साथी विद्या, विनय, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, सत्यनिष्ठा और ईश्वर में विश्वास ही होते हैं।
2. काम क्रोध मद लोभकी, जौ लौं मन में खान। तौ लौं पंडित मूरखौं, तुलसी एक समान।
अर्थ: जब तक मन में काम, क्रोध, मद और लोभ जैसे विकार बसे हैं, तब तक चाहे कितना भी ज्ञानी क्यों न हो, वह मूर्ख के समान ही है।
3. आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह। 'तुलसी' तहां न जाइये, कंचन बरसे मेह।
अर्थ: जहां जाने पर आपको घरवालों का स्नेह और खुशी ना मिले, चाहे वहां सोने की बारिश ही क्यों न हो, वहां कभी नहीं जाना चाहिए।
4. तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुं ओर। बसीकरन इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर।
अर्थ: मीठे शब्दों से चारों ओर सुख फैलता है। यह सभी को अपने वश में करने का सबसे कारगर मंत्र है। इसलिए कठोर शब्दों का त्याग कर मधुरता से बात करनी चाहिए।
5. तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए। अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए।
अर्थ: राम के भरोसे से बेखौफ होकर सोएं। जो होना नहीं है वो नहीं होगा, जो होना है वो होकर ही रहेगा। इसलिए व्यर्थ की चिंता न करें और खुश रहें।
6. लंका जहं कामिनि सुंदर, रावन तहां अधम राज। ताही पर विजय पाई कै, सीता सुमित्रा सुत राज।
अर्थ: जहां सुंदर स्त्री हो और क्रूर राजा हो, वहां विजय पाना कठिन होता है। फिर भी सीता जैसी पतिव्रता और राम जैसे धर्मनिष्ठ राजा ने उस पर विजय पाई।
7. कायर भयभीत दीन दुखी, लघु जिय लघु करम कराही। सूर बिरुद बल धीरज धर्म सत्य पराक्रम जमाही।
अर्थ: कायर और डरपोक व्यक्ति छोटे-छोटे काम करते हैं, जबकि महान और वीर व्यक्ति साहस, धैर्य, धर्म, सत्य और पराक्रम से युक्त होते हैं।
8. तुलसी सज्जन बिगरी बात, बनत नहि संजोय। चूके मुखनि निकरी वाणी, फिरि परत नहिं होय।
अर्थ: सज्जन व्यक्ति कभी गलत बात नहीं करता है। यदि मुंह से निकल भी जाए तो उसे वापस नहीं लिया जा सकता।
9. सत्य धर्म हीन राजा, प्रजा तजि सब भाग्यो। अन्यायी करहिं ज्यों राजा, प्रजा त्यों फल भोग्यो।
अर्थ: सत्य और धर्म का पालन न करने वाला राजा देश और प्रजा को छोड़कर भाग जाता है। अन्याय करने वाला राजा जैसा करता है उसका फल प्रजा को भी भुगतना पड़ता है।
10. काहू की करि न सराहना, काहू न निंदा करी। अपने को रक्खे निर्मल, तुलसी यही खरी।
अर्थ: किसी की प्रशंसा या निंदा न करें। खुद को साफ रखें। यही असली सत्यनिष्ठा है।
ये कुछ चुनिंदा दोहे हैं जो तुलसीदास जी के विचारों और दर्शन को स्पष्ट करते हैं। इन दोहों का जीवन में पालन कर हम आत्मविकास और समाज सुधार में योगदान दे सकते हैं।
तुलसीदास की जीवनी: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: तुलसीदास का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: तुलसीदास के जन्म तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ का मानना है कि उनका जन्म 1532 ईस्वी में हुआ था, जबकि कुछ अन्य 1574 ईस्वी को उनका जन्म वर्ष मानते हैं। उनके जन्म स्थान को लेकर भी स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन अधिकांश मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म अवध क्षेत्र (आधुनिक उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
प्रश्न 2: तुलसीदास किस धर्म से संबंधित थे?
उत्तर: तुलसीदास को भगवान विष्णु के परम भक्त के रूप में जाना जाता है। वे वैष्णव संप्रदाय से ताल्लुक रखते थे।
प्रश्न 3: तुलसीदास की सबसे महत्वपूर्ण रचना कौन सी है?
उत्तर: तुलसीदास की कई रचनाएँ हैं, लेकिन उनका महान काम रामचरितमानस माना जाता है। यह अवधी भाषा में लिखा गया महाकाव्य है, जो हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ रामायण की तुलसीदास की व्याख्या है।
प्रश्न 4: तुलसीदास के लेखन की भाषा कौन सी थी?
उत्तर: तुलसीदास ने अवधी और खड़ी बोली हिंदी दोनों भाषाओं में लिखा था। उनकी अधिकांश रचनाएँ अवधी में हैं, लेकिन उन्होंने हनुमान चालीसा जैसी कुछ रचनाएँ खड़ी बोली हिंदी में भी लिखीं।
प्रश्न 5: तुलसीदास का भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: तुलसीदास का भारतीय समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। उनके लेखन ने हिंदू धर्म, विशेष रूप से राम भक्ति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी रचनाएँ आज भी भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं और उनका पाठ हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।