सादगी, करुणा और आध्यात्मिकता का प्रतीक: संत फ्रांसिस ऑफ़ असिसी के जीवन का चक्र
Saint Francis of Assisi Biography: इस लेख 13वीं सदी के में संत फ्रांसिस ऑफ असिसी के जीवन, फ्रांसिस्कन ऑर्डर की स्थापना, चमत्कार, शिक्षाएँ और कला-संस्कृति पर उनके प्रभाव का वर्णन है।

जीवनी Last Update Mon, 24 March 2025, Author Profile Share via
संत फ्रांसिस ऑफ़ असिसी (1181-1226) का जन्म इटली के असिसी शहर में एक धनी व्यापारी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पिएत्रो डि बर्नाडोने था, जो कपड़े के व्यवसाय से जुड़े थे और उनकी माँ पिका एक धर्मपरायण महिला थीं। उनका जन्म नाम जियोवन्नी था, लेकिन उनके पिता ने उन्हें फ्रांसेस्को (फ्रांस से जुड़े होने के कारण) कहा, क्योंकि वे फ्रांस से व्यापारिक सामान लाया करते थे और फ्रांसीसी संस्कृति से काफी प्रभावित थे।
संत फ्रांसिस का प्रारंभिक जीवन
फ्रांसिस का बचपन काफी सुखद और विलासिता में बीता। वे एक सुंदर, आकर्षक और आनंदपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे। युवा अवस्था में वे बहुत ही मिलनसार और खुशमिजाज व्यक्ति थे और अपने दोस्तों के साथ समय बिताने में उन्हें बहुत आनंद आता था। उनका जीवन धनी परिवारों की अन्य संतानों की तरह ही मज़े और मनोरंजन से भरा हुआ था। वे अच्छे कपड़े पहनते थे, नृत्य करते थे और उत्सवों में भाग लेते थे।
युद्ध के प्रति उनका रुझान भी देखा गया, जब उन्होंने अपने शहर की सेना में शामिल होकर युद्ध में भाग लिया। 1202 में, असिसी और पेरूगिया के बीच युद्ध हुआ, जिसमें फ्रांसिस को बंदी बना लिया गया और लगभग एक वर्ष तक कैद में रखा गया। इस घटना ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। उनके बंदी जीवन के दौरान, वे बीमारी से भी ग्रस्त हो गए, जिसके बाद उन्होंने जीवन के गहरे अर्थों की खोज शुरू की।
संत फ्रांसिस की आध्यात्मिक जागृति
कैद से रिहा होने के बाद, फ्रांसिस ने अपने जीवन में एक परिवर्तन महसूस किया। उन्होंने अपनी पुरानी विलासितापूर्ण जीवन शैली से दूरी बनानी शुरू कर दी। एक दिन, फ्रांसिस असिसी के पास सेंट डेमियन चर्च गए और वहाँ प्रार्थना करने लगे। कहते हैं कि उसी समय उन्होंने चर्च में एक क्रॉस से यह आवाज़ सुनी, "जाओ, मेरे घर का पुनर्निर्माण करो।" फ्रांसिस ने इसे एक ईश्वरीय आदेश समझा और अपने परिवार की संपत्ति का त्याग कर दिया। उन्होंने अपने पिता की दुकान से कपड़े बेचकर प्राप्त धन से चर्च की मरम्मत शुरू की।
इस घटना के बाद, फ्रांसिस ने अपनी सारी संपत्ति छोड़ दी और गरीबों के बीच रहने लगे। उन्होंने गरीबी, सादगी और ईश्वर के प्रति प्रेम को अपने जीवन का मूल उद्देश्य बना लिया। वे अपने पुराने दोस्तों से दूर हो गए और अधिकतर समय प्रार्थना और ध्यान में बिताने लगे। वे अक्सर जंगलों में चले जाते और वहाँ शांतिपूर्वक प्रार्थना करते।
फ्रांसिस का आध्यात्मिक जीवन धीरे-धीरे गहराता गया। उन्होंने हर प्राणी में ईश्वर का अंश देखा और प्रकृति के साथ गहरे संबंध स्थापित किए। उन्होंने जीवन की सरलता और शांति को अपनाया और लोगों को भी ईश्वर के प्रेम की ओर अग्रसर किया। उनका मानना था कि सच्चा सुख और संतोष ईश्वर के प्रति समर्पण में है, न कि भौतिक सुखों में।
फ्रांसिस की गरीबों और रोगियों के प्रति सेवा
फ्रांसिस की सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी सेवा भावना। उन्होंने समाज के सबसे गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों की सेवा की। वे कोढ़ियों की सेवा में भी अग्रणी रहे, जो उस समय समाज से पूरी तरह से अलग-थलग थे। फ्रांसिस ने न केवल उनकी देखभाल की बल्कि उनके बीच रहकर उन्हें अपनाया।
उन्होंने "भाइयों का छोटा समूह" (Fraternal Order) की स्थापना की, जिसे आज फ्रांसिस्कन ऑर्डर के नाम से जाना जाता है। इस समूह का उद्देश्य गरीबों की सेवा और ईसाई धर्म के सादगीपूर्ण जीवन को अपनाना था। इस समुदाय के सदस्य धन-संपत्ति का त्याग कर एक सादा और धर्मपरायण जीवन जीने लगे।
फ्रांसिस्कन ऑर्डर की स्थापना का इतिहास
संत फ्रांसिस ऑफ़ असिसी ने जिस फ्रांसिस्कन ऑर्डर (Franciscan Order) की स्थापना की, वह मध्यकालीन ईसाई धर्म में एक क्रांतिकारी धार्मिक आंदोलन था। इसका उद्देश्य ईसाई धर्म के सादगी, सेवा और भाईचारे के मूल्यों का पालन करना था। इस ऑर्डर की स्थापना गरीबों, जरूरतमंदों और समाज के सबसे हाशिए पर रहने वाले लोगों की सेवा के लिए की गई थी।
संत फ्रांसिस का जीवन परिवर्तन उनके आध्यात्मिक जागरण के बाद शुरू हुआ। अपने धनी व्यापारी पिता और विलासितापूर्ण जीवन को त्यागकर उन्होंने एक साधारण और सादा जीवन अपनाया। उनका मुख्य उद्देश्य ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और समाज के गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा करना था।
उन्होंने पूरी तरह से गरीबी, सादगी और निस्वार्थ सेवा को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। ईश्वर के प्रति उनकी असीम आस्था और मानवता के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें अपने समय के धार्मिक व्यक्तित्वों में विशिष्ट स्थान दिया।
फ्रांसिस्कन ऑर्डर की स्थापना
1209 में, फ्रांसिस ने अपने कुछ अनुयायियों के साथ मिलकर फ्रांसिस्कन ऑर्डर की नींव रखी। उन्होंने इस ऑर्डर को "भाइयों का छोटा समूह" (Fraternal Order) कहा। इस ऑर्डर की स्थापना रोम के पोप इनोसेंट तृतीय से अनुमति प्राप्त करने के बाद हुई। फ्रांसिस और उनके अनुयायियों ने पोप से मिलकर अपनी नई धार्मिक व्यवस्था को मान्यता देने की प्रार्थना की।
फ्रांसिस ने पोप को बताया कि वे ईसाई धर्म के मूल सिद्धांतों के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, जिसमें पूरी तरह से गरीबी, सादगी और ईश्वर के प्रति समर्पण हो। पोप ने उनकी सादगी और समर्पण को देखकर उन्हें मौखिक रूप से ऑर्डर की स्थापना की अनुमति दे दी।
फ्रांसिस्कन ऑर्डर के सिद्धांत
फ्रांसिस्कन ऑर्डर के तीन मुख्य सिद्धांत थे:
गरीबी – फ्रांसिस और उनके अनुयायी किसी भी प्रकार की संपत्ति, धन, या भौतिक सुखों का त्याग करते थे। वे पूर्णतः भिक्षा पर निर्भर रहते थे और जो भी उन्हें दान मिलता था, उसी से अपना जीवन यापन करते थे।
सादगी – उनका जीवन अत्यंत साधारण होता था। वे धनी वस्त्रों और विलासितापूर्ण साधनों से दूर रहते थे। उनकी वेशभूषा साधारण भूरे वस्त्र होती थी, जिसे एक रस्सी से बांधकर पहना जाता था। इस प्रकार के वस्त्रों का उद्देश्य उनकी सादगी और समर्पण को दर्शाना था।
भाईचारा – फ्रांसिस्कन ऑर्डर के सदस्य सभी इंसानों को अपना भाई और बहन मानते थे। वे जाति, वर्ग और स्थिति से परे जाकर सभी के साथ समानता का व्यवहार करते थे।
फ्रांसिस्कन ऑर्डर का मुख्य उद्देश्य गरीबों, बीमारों और समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों की सेवा करना था। उन्होंने अस्पतालों में काम किया, कोढ़ियों की सेवा की और जहाँ कहीं भी ज़रूरतमंद लोग थे, उनकी मदद करने के लिए तत्पर रहते थे।
संगठन का विस्तार:
जैसे-जैसे फ्रांसिस की ख्याति और उनके संदेश का प्रसार हुआ, उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई। इस ऑर्डर में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी भाग लिया। संत फ्रांसिस ने अपनी एक महिला अनुयायी, क्लेयर ऑफ़ असिसी के साथ मिलकर एक महिला शाखा की स्थापना की, जिसे "क्लेरिस" (Poor Clares) के नाम से जाना जाता है। इस शाखा की महिलाएं भी गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा में जीवन व्यतीत करती थीं।
इसके साथ ही, एक तीसरी शाखा की भी स्थापना की गई, जिसे "थर्ड ऑर्डर" कहा गया। यह शाखा उन लोगों के लिए थी जो अपनी सामान्य दुनिया में रहते हुए फ्रांसिस्कन सिद्धांतों का पालन करना चाहते थे, लेकिन औपचारिक रूप से ऑर्डर का हिस्सा नहीं बन सकते थे।
फ्रांसिस्कन ऑर्डर का प्रभाव:
फ्रांसिस्कन ऑर्डर ने मध्यकालीन यूरोप के धार्मिक और सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। इसने समाज में समानता, मानवता और भाईचारे के मूल्यों का प्रसार किया। संत फ्रांसिस का यह आंदोलन एक ऐसी धार्मिक व्यवस्था थी, जो केवल चर्च के अंदर ही सीमित नहीं थी, बल्कि समाज के गरीब और उपेक्षित वर्गों की सेवा के लिए समर्पित थी।
फ्रांसिस्कन ऑर्डर ने अपने सेवा कार्यों से समाज में बदलाव लाने का काम किया। इस ऑर्डर के सदस्य ईसाई धर्म के सच्चे आदर्शों के अनुसार जीते थे और उनका मुख्य लक्ष्य समाज में शांति, प्रेम और सहानुभूति का प्रसार करना था।
संत फ्रांसिस ऑफ़ असिसी की आध्यात्मिक शिक्षाएँ और दर्शन
संत फ्रांसिस ऑफ़ असिसी की आध्यात्मिक शिक्षाएँ और दर्शन ने न केवल मध्यकालीन ईसाई धर्म पर गहरा प्रभाव डाला, बल्कि आज भी वे लोगों के लिए प्रेरणादायक बने हुए हैं। उनकी शिक्षाएँ ईश्वर के प्रति असीम प्रेम, सादगी, करुणा और सभी प्राणियों के प्रति गहरे सम्मान पर आधारित थीं। उन्होंने अपने जीवन और कार्यों के माध्यम से ईश्वर के सच्चे मार्ग को दिखाने की कोशिश की और यह सिखाया कि धर्म का वास्तविक अर्थ केवल पूजा और अनुष्ठान नहीं, बल्कि मानवता और प्रकृति की सेवा में निहित है।
1. गरीबी और सादगी का महत्व:
संत फ्रांसिस की सबसे प्रमुख शिक्षाओं में से एक थी गरीबी और सादगी का आदर्श। उन्होंने यह सिखाया कि सच्ची आध्यात्मिकता और ईश्वर से निकटता भौतिक संपत्ति और ऐश्वर्य में नहीं है, बल्कि सादगी में है।
आध्यात्मिक गरीबी: फ्रांसिस ने जीवन में संपत्ति और सांसारिक सुखों का त्याग किया और सादगी को अपनाया। उनके अनुसार, संपत्ति और सांसारिक इच्छाएँ हमें ईश्वर से दूर करती हैं। वे मानते थे कि जब व्यक्ति सभी भौतिक वस्तुओं को छोड़ देता है, तो वह ईश्वर के और करीब आ जाता है। उन्होंने अपने अनुयायियों को भी यही सिखाया कि जितना अधिक वे भौतिक सुख-संपत्ति का त्याग करेंगे, उतनी ही अधिक उनकी आत्मा ईश्वर के साथ जुड़ सकेगी।
आत्मसमर्पण: फ्रांसिस का जीवन एक पूर्ण आत्मसमर्पण का उदाहरण था। उन्होंने अपने व्यक्तिगत सुखों, परिवार की संपत्ति और समाज में अपने स्थान का त्याग किया ताकि वे ईश्वर की सेवा कर सकें। वे मानते थे कि व्यक्ति को अपने जीवन और इच्छाओं को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए और उसके मार्ग पर चलना चाहिए।
2. ईश्वर से प्रेम और विश्वास:
संत फ्रांसिस की दूसरी प्रमुख शिक्षा थी ईश्वर के प्रति असीम प्रेम और विश्वास। वे ईश्वर को अपनी जीवन यात्रा का केंद्र मानते थे और हर चीज़ में उसकी उपस्थिति को महसूस करते थे।
ईश्वर में पूर्ण विश्वास: फ्रांसिस ने हमेशा अपने अनुयायियों को सिखाया कि किसी भी कठिनाई या चुनौती के समय, ईश्वर पर अटूट विश्वास रखना चाहिए। उनके अनुसार, ईश्वर हमारे साथ है, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। उन्होंने स्वयं भी गरीबी और कठिनाई के जीवन को स्वीकार किया, लेकिन कभी भी ईश्वर से अपना विश्वास नहीं खोया।
प्रेम का संदेश: फ्रांसिस का मानना था कि ईश्वर प्रेम का प्रतीक है और यदि हमें ईश्वर के करीब जाना है, तो हमें सभी के प्रति प्रेम और करुणा दिखानी होगी। उन्होंने अपने जीवन में इसी प्रेम का पालन किया और सभी प्राणियों, चाहे वे मनुष्य हों या जानवर, के प्रति समान प्रेम और करुणा का प्रदर्शन किया।
3. करुणा और सेवा का आदर्श:
फ्रांसिस की शिक्षा में करुणा और सेवा का भी महत्वपूर्ण स्थान था। उन्होंने सिखाया कि हर इंसान में ईश्वर की छवि है, इसलिए हमें सभी के प्रति करुणा और सहानुभूति दिखानी चाहिए।
बीमारों और गरीबों की सेवा: फ्रांसिस ने अपने जीवन में हमेशा गरीबों, बीमारों और समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों की सेवा की। उनके अनुसार, जो व्यक्ति गरीब और असहाय हैं, उनमें ईश्वर का वास है। इसलिए, उनकी सेवा करना ईश्वर की सेवा करने के बराबर है। उन्होंने समाज के कोढ़ियों और हाशिए पर रहने वाले लोगों की भी देखभाल की, जो उस समय समाज द्वारा बहिष्कृत थे।
मानवता का धर्म: फ्रांसिस ने यह भी सिखाया कि सच्चा धर्म वही है, जो मानवता की सेवा में निहित है। उन्होंने कभी किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति, धर्म, या समाज में स्थान के आधार पर भेदभाव से नहीं देखा। उनके अनुसार, सभी इंसान बराबर हैं और हमें सभी के प्रति समान रूप से प्रेम और करुणा दिखानी चाहिए।
4. प्रकृति और जीवों के प्रति सम्मान:
संत फ्रांसिस का प्रकृति के प्रति गहरा सम्मान उनके दर्शन की अनूठी विशेषता थी। वे प्रकृति को ईश्वर की रचना मानते थे और उसकी हर चीज़ में ईश्वर की उपस्थिति को देखते थे।
प्रकृति में ईश्वर की उपस्थिति: फ्रांसिस ने हमेशा प्रकृति और उसके सभी जीवों के प्रति गहरा सम्मान दिखाया। उन्होंने न केवल इंसानों के प्रति, बल्कि पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और हर प्राकृतिक तत्व के प्रति करुणा और प्रेम का संदेश दिया। उनके अनुसार, हर प्राणी और प्राकृतिक तत्व ईश्वर की रचना है और हमें उनकी देखभाल करनी चाहिए।
"भाई सूर्य" और "बहन चंद्रमा": फ्रांसिस के प्रसिद्ध भजन "कैण्टिकल ऑफ़ द सन" में उन्होंने सूर्य, चंद्रमा, हवा, पानी और पृथ्वी को "भाई" और "बहन" कहकर पुकारा। इससे यह पता चलता है कि वे प्रकृति के हर तत्व को परिवार की तरह मानते थे और उसमें ईश्वर की झलक देखते थे।
5. भाईचारा और समानता:
फ्रांसिस की शिक्षा में भाईचारा और समानता का भी महत्वपूर्ण स्थान था। उन्होंने हमेशा लोगों के बीच एकता, भाईचारे और समानता पर जोर दिया।
फ्रेटरनिटी (Brotherhood): फ्रांसिस ने अपने अनुयायियों के साथ हमेशा समानता का व्यवहार किया। उनके लिए हर व्यक्ति, चाहे वह अमीर हो या गरीब, एक समान था। वे अपने अनुयायियों से यही उम्मीद करते थे कि वे भी हर व्यक्ति के साथ समानता और भाईचारे का व्यवहार करें। उन्होंने अपने अनुयायियों को "भाई" कहकर बुलाया, जिससे यह संदेश जाता है कि हम सभी एक ही ईश्वर के बच्चे हैं और हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान दिखाना चाहिए।
समानता का सिद्धांत: फ्रांसिस ने समाज में मौजूद जाति, वर्ग और सामाजिक भेदभाव को अस्वीकार किया। उनके अनुसार, हर इंसान समान है और सभी को समान अवसर और सम्मान मिलना चाहिए। उनका यह समानता का सिद्धांत समाज के वंचित और गरीब वर्गों के लिए एक नई रोशनी लेकर आया।
6. शांति और अहिंसा:
संत फ्रांसिस का जीवन शांति और अहिंसा के आदर्श पर आधारित था। उन्होंने हमेशा संघर्षों और हिंसा से दूर रहने और शांति के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।
शांति का प्रचार: फ्रांसिस ने जीवन भर शांति और मेल-जोल का प्रचार किया। वे मानते थे कि सच्ची शांति तभी मिलती है, जब व्यक्ति अपने भीतर और समाज में सभी के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। उन्होंने अपने अनुयायियों को सिखाया कि संघर्षों और विवादों से दूर रहकर शांति के मार्ग पर चलना चाहिए।
अहिंसा का आदर्श: फ्रांसिस ने हमेशा अहिंसा का पालन किया। वे हर प्रकार की हिंसा, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, का विरोध करते थे। उनके अनुसार, ईश्वर के प्रति सच्चा समर्पण तभी हो सकता है, जब व्यक्ति किसी भी प्रकार की हिंसा से दूर रहे और प्रेम और करुणा का जीवन जिए।
7. प्रार्थना और ध्यान:
संत फ्रांसिस की शिक्षाओं में प्रार्थना और ध्यान का भी विशेष महत्व था। उन्होंने प्रार्थना को ईश्वर से संवाद का एक महत्वपूर्ण माध्यम माना और हमेशा अपने अनुयायियों को प्रार्थना और ध्यान में लीन रहने के लिए प्रेरित किया।
प्रार्थना का महत्व: फ्रांसिस के अनुसार, प्रार्थना वह साधन है, जिससे हम ईश्वर के साथ संवाद कर सकते हैं। उन्होंने हमेशा अपने अनुयायियों से कहा कि नियमित प्रार्थना से ही आत्मा को शांति और संतुष्टि मिलती है। प्रार्थना के माध्यम से ही व्यक्ति अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति को महसूस कर सकता है।
ध्यान: फ्रांसिस ने ध्यान को भी महत्वपूर्ण माना। उनके अनुसार, ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकता है और ईश्वर के करीब जा सकता है। उन्होंने प्रार्थना और ध्यान को अपनी आध्यात्मिक यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया।
संत फ्रांसिस ऑफ़ असिसी के चमत्कार
फ्रांसिस्कन ऑर्डर के संस्थापक संत फ्रांसिस को न केवल उनके सेवा कार्यों के लिए जाना जाता है, बल्कि उनके जीवनकाल में किए गए चमत्कारों के लिए भी पहचाना जाता है। उनकी गहरी आस्था और ईश्वर के प्रति समर्पण के कारण कई चमत्कारिक घटनाएँ उनके जीवन से जुड़ी हैं।
पक्षियों को उपदेश देना: संत फ्रांसिस के जीवन से जुड़ा एक प्रसिद्ध चमत्कार उनके द्वारा पक्षियों को दिए गए उपदेश का है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार जब वे यात्रा कर रहे थे, तो उन्होंने कई पक्षियों को एकत्र देखा। वे रुक गए और पक्षियों को उपदेश देना शुरू किया। यह एक अद्भुत दृश्य था, क्योंकि पक्षी शांत होकर संत फ्रांसिस की बातों को सुनने लगे। इस घटना के माध्यम से फ्रांसिस ने यह संदेश दिया कि ईश्वर की रचना का हर जीव, चाहे वह मनुष्य हो या जानवर, उसकी पूजा और उसके संदेश को समझ सकता है।
कोढ़ियों का इलाज: फ्रांसिस के चमत्कारों में एक और प्रसिद्ध घटना कोढ़ियों के इलाज की है। उन्होंने न केवल कोढ़ियों की सेवा की, बल्कि कई बार उनकी प्रार्थनाओं और आशीर्वाद से कोढ़ी ठीक भी हो जाते थे। ऐसी कई घटनाओं का उल्लेख किया गया है जहाँ उन्होंने गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगों को ठीक किया।
पानी का चमत्कार: संत फ्रांसिस के जीवन में एक और चमत्कारिक घटना पानी से जुड़ी है। एक बार, जब वे और उनके अनुयायी यात्रा कर रहे थे, उन्हें एक सूखी जगह पर पानी की आवश्यकता हुई। संत फ्रांसिस ने एक चट्टान पर प्रार्थना की और उस चट्टान से अचानक पानी बहने लगा। यह घटना उनके अनुयायियों के बीच गहरी आस्था और ईश्वर के प्रति उनके असीम विश्वास को दर्शाती है।
दृष्टिहीन को दृष्टि प्रदान करना: ऐसा कहा जाता है कि संत फ्रांसिस ने कई दृष्टिहीन व्यक्तियों को दृष्टि प्रदान की। उनकी प्रार्थनाओं और आशीर्वाद से लोग अपनी दृष्टि पुनः प्राप्त करते थे। ये घटनाएँ उनके ईश्वर के प्रति गहरे संबंध और उनके चमत्कारी जीवन को और भी महान बनाती हैं।
आत्मिक चमत्कार: संत फ्रांसिस का सबसे बड़ा चमत्कार यह था कि उन्होंने लोगों के दिलों को बदल दिया। उनके जीवन और उपदेशों ने कई लोगों को आध्यात्मिक रूप से प्रेरित किया और ईश्वर की ओर लौटने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने न केवल शारीरिक चमत्कार किए, बल्कि आत्मिक चमत्कार भी किए, जिससे लोगों की सोच और जीवन का तरीका बदल गया।
संत फ्रांसिस ऑफ़ असिसी की मृत्यु
संत फ्रांसिस ऑफ़ असिसी का निधन 3 अक्टूबर 1226 को हुआ, जब वे 44 साल के थे। उनकी मृत्यु ने उनके जीवन के साधारण और विनम्र तरीके को दर्शाया और उन्होंने अंतिम समय में भी अपने सादगी और ईश्वर के प्रति असीम समर्पण का आदर्श प्रस्तुत किया।
संत फ्रांसिस का स्वास्थ्य धीरे-धीरे गिरता जा रहा था। उनके जीवन का अंतिम समय गंभीर शारीरिक कष्टों से भरा हुआ था। उन्होंने अपनी आंखों की दृष्टि खो दी थी और उनके शरीर को कई प्रकार की बीमारियों ने जकड़ लिया था। लेकिन इन सबके बावजूद, उन्होंने अपनी आध्यात्मिकता और ईश्वर के प्रति अपने विश्वास को कभी नहीं खोया।
1224 में, फ्रांसिस ने एक अनुभव प्राप्त किया जिसे "स्टिगमाटा" कहा जाता है। यह एक असाधारण घटना थी, जिसमें उनके शरीर पर यीशु मसीह के क्रूस पर चढ़ने के घावों के निशान उभर आए थे। इसे उनके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अनुभवों में से एक माना जाता है। इस घटना ने उनके अनुयायियों के बीच उनकी पवित्रता और ईश्वर से निकटता को और मजबूत किया।
संत की मान्यता:
संत फ्रांसिस की मृत्यु के दो साल बाद, 16 जुलाई 1228 को, पोप ग्रेगरी IX ने उन्हें औपचारिक रूप से संत घोषित किया। असिसी में उनके सम्मान में एक भव्य बेसिलिका ऑफ़ सेंट फ्रांसिस का निर्माण किया गया, जो आज भी एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जहाँ लाखों लोग उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने आते हैं।