परिचय
हिंदी साहित्य के महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद (1880–1936) को “कथाशिल्पी” और “उपन्यास सम्राट” के नाम से जाना जाता है। उनकी कहानियाँ समाज के यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का सजीव चित्रण करती हैं। प्रेमचंद की रचनाओं में स्त्री का जीवन, उसकी पीड़ा, त्याग और संघर्ष बार-बार सामने आता है। “स्वर्ग की देवी” उनकी प्रसिद्ध कहानियों में से एक है, जिसमें एक साधारण स्त्री “लीला” की दारुण कथा प्रस्तुत की गई है। यह केवल कहानी नहीं, बल्कि भारतीय स्त्री-जीवन की वेदना और उसके धैर्य का जीवंत दस्तावेज है।
कहानी की शुरुआत
कहानी की नायिका लीला एक चंचल, स्वतंत्र और जीवंत स्वभाव की लड़की थी। उसके बचपन के दिन खुलेपन और स्वतंत्रता में बीते। लेकिन विवाह के बाद उसका जीवन पूरी तरह बदल गया। वह जिस ससुराल में आई, वहां का वातावरण कठोर, संकीर्ण और रूढ़िवादी था।
घर के बुजुर्ग, संत शरण और उनकी पत्नी, परंपराओं के पक्के अनुयायी थे। छोटी-छोटी बातों पर टोका-टाकी, सास का गुस्सा और पति का दब्बूपन — यह सब लीला के लिए असहनीय था। उसका पति सीता शरण कमज़ोर इरादों वाला आदमी था। वह पत्नी का साथ देने के बजाय माता-पिता और घरवालों के डर से चुप रहता। इस कारण लीला का मन टूटने लगा।
लीला की घुटन
बचपन से खुलकर जीने वाली लीला को अब अंधेरी कोठरी में सीमित होना पड़ा। उसकी इच्छाएँ और चाहतें दबा दी गईं। वह अपनी खुशी से कुछ भी नहीं कर सकती थी। सांस लेने की आज़ादी भी उससे छीन ली गई थी। समाज और परंपरा की बेड़ियों में जकड़ी लीला को लगता कि उसका अस्तित्व धीरे-धीरे मिटता जा रहा है।
लेकिन उसने सब सहा। क्योंकि स्त्री को यही सिखाया गया था — “घर की इज़्ज़त बनाए रखना है, चाहे अपनी इच्छाओं का बलिदान ही क्यों न करना पड़े।”
मातृत्व और दुख
कुछ समय बाद लीला माँ बनी। यह उसके जीवन का सबसे सुखद क्षण था। लेकिन स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और घर की कुरीतियाँ उसकी पीड़ा को और बढ़ा देतीं। बच्चे के जन्म के बाद भी उसे आराम नहीं मिला।
फिर वह दुखद पल आया जब उसके बच्चे दुनिया से चले गए। लीला का हृदय टूट गया। उसकी गोद सूनी हो गई और उसकी आँखें हमेशा आँसुओं से भरी रहने लगीं। यह उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा आघात था।
पति का बदलता चेहरा
लीला को उम्मीद थी कि उसके दुख में उसका पति साथ देगा। लेकिन सीता शरण खुद ग़म भुलाने के लिए दोस्तों और रंग-रेलियों में डूब गया। उसने अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लिया। पत्नी अकेली छूट गई।
यह देखकर लीला और टूट गई। लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने निश्चय किया कि वह अपने पति को गलत रास्ते से वापस लाएगी।
लीला का आत्मबल
लीला ने खुद को सँवारा, सजाया और जीवन में फिर से मुस्कुराना शुरू किया। उसने अपने पति को यह दिखाया कि वह अब भी प्रेम और समर्पण से भरी हुई है। जब सीता शरण ने लीला को इस रूप में देखा तो उसकी आँखें खुल गईं। उसे समझ आया कि लीला ही उसकी “स्वर्ग की देवी” है। वह स्त्री जिसने अपने सारे दुख भूलकर पति का जीवन सँवारने का संकल्प लिया।
पात्र-चित्रण
- लीला: त्याग, धैर्य और प्रेम की प्रतिमूर्ति। उसका संघर्ष और साहस कहानी की आत्मा है।
- सीता शरण: दब्बू और कमजोर पति, जो पत्नी की महत्ता को देर से समझ पाता है।
- सास-ससुर: परंपरा और कुरीतियों के प्रतिनिधि।
सामाजिक सन्देश
यह कहानी समाज की उन परंपराओं पर करारा प्रहार है, जिन्होंने स्त्रियों की स्वतंत्रता और अस्तित्व को दबा दिया। यह दिखाती है कि स्त्री केवल सहनशील नहीं, बल्कि परिवार की धुरी है। अगर स्त्री न हो, तो घर टूट जाता है।
आज की प्रासंगिकता
हालाँकि यह कहानी कई दशक पहले लिखी गई, लेकिन इसका संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है। आज भी कई स्त्रियाँ सामाजिक दबाव और परंपराओं में बंधी हुई हैं। लीला का संघर्ष हमें सिखाता है कि स्त्री के त्याग और प्रेम को पहचानना और उसका सम्मान करना ज़रूरी है।
"स्त्री का त्याग और प्रेम स्वर्ग की देवी बनाता है। हमें उसे कमजोर नहीं, बल्कि शक्ति का प्रतीक मानना चाहिए।"

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