गुरु नानक देव: सिख धर्म के प्रथम गुरु! जीवन और कार्यों पर एक नज़र Biography of Guru Nanak Dev in Hindi with FAQs
गुरु नानक देव जी (1469-1539) सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु थे। उनका जीवन आध्यात्मिकता, सामाजिक सुधार और मानवता के संदेश से परिपूर्ण था। आइए उनके जीवन और कार्यों पर एक नज़र डालें:

जीवनी Last Update Wed, 24 July 2024, Author Profile Share via
जन्म और प्रारंभिक जीवन:
गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन 1469 ईस्वी में तलवंडी (वर्तमान पाकिस्तान) नामक स्थान पर हुआ था। उनका जन्म नाम नानक था। उनके पिता मेहता कालू जी त्रेहान खत्री थे और माता तृप्ता देवी थीं। बचपन से ही गुरु नानक जी गंभीर विचारों वाले और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उन्हें सांसारिक चीजों में कम और आध्यात्मिक खोज में ज्यादा रुचि थी।
ईश्वरीय अनुभूति:
युवावस्था में गुरु नानक देव जी को एक दिव्य अनुभव हुआ। वह रावी नदी के किनारे ध्यान में लीन थे, तभी उन्हें अलौकिक ज्योति का दर्शन हुआ और उन्हें ईश्वर का संदेश प्राप्त हुआ। इस अनुभव के बाद उन्होंने अपना जीवन ईश्वर की भक्ति और सत्य का प्रचार करने के लिए समर्पित कर दिया।
भ्रमण और उपदेश:
गुरु नानक देव जी ने जीवन भर भ्रमण किया और लोगों को उपदेश दिए। उन्होंने भारत, तिब्बत, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के कई क्षेत्रों की यात्रा की। अपने भ्रमणों के दौरान उन्होंने विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का अध्ययन किया और लोगों को सहिष्णुता, भाईचारा और एक ईश्वर की उपासना का संदेश दिया।
सिख धर्म की स्थापना:
अपने भ्रमणों के दौरान गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की नींव रखी। उन्होंने "ੴ (इक ओंकार)" अर्थात "एक ईश्वर" के सिद्धांत का प्रचार किया। उन्होंने जाति-पाति भेद, मूर्तिपूजा और आडंबरों का विरोध किया। उन्होंने "नाम जपो, कीर्त करो, वंड छाक (ईश्वर का नाम जपो, ईमानदारी से कमाओ और जरूरतमंदों के साथ साझा करो)" के मूल मंत्र का उपदेश दिया।
गुरुद्वारों की स्थापना:
गुरु नानक देव जी ने सिखों के लिए एक सामुदायिक केंद्र के रूप में गुरुद्वारों की स्थापना की। गुरुद्वारों में सभी धर्मों के लोगों का स्वागत किया जाता था, और वहां लंगर (सामुदायिक भोजन) की परंपरा शुरू की गई।
गुरु परंपरा की शुरुआत:
अपने जीवन के अंतिम वर्षों में गुरु नानक देव जी ने गुरु अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी चुना और सिख धर्म की गुरु परंपरा की शुरुआत की।
विरासत:
गुरु नानक देव जी का सिख धर्म के विकास में अमूल्य योगदान रहा है। उनके उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं और विश्व शांति एवं मानवता के संदेश का प्रचार करते हैं। उन्हें सिख धर्म के गुरु के रूप में ही नहीं, बल्कि एक महान संत और समाज सुधारक के रूप में भी सम्मानित किया जाता है।
अतिरिक्त जानकारी:
- गुरु नानक देव जी की जन्मदिन को प्रकाश पर्व या गुरु नानक जयंती के रूप में मनाया जाता है।
- गुरु वाणी नामक ग्रंथ में उनके उपदेशों को संकलित किया गया है।
- गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को "गुरुबाणी" के रूप में जाना जाता है।
जानकारी | विवरण |
जन्म | कार्तिक पूर्णिमा, 1469 ईस्वी (वर्तमान पाकिस्तान में तलवंडी) |
जन्म का नाम | नानक |
माता-पिता | पिता: मेहता कालू जी, माता: तृप्ता देवी |
धर्म | सिख धर्म के संस्थापक |
उपदेश | "ੴ (इक ओंकार)" अर्थात "एक ईश्वर" |
विरोध | जाति-पाति भेद, मूर्तिपूजा, आडंबर |
मूल मंत्र | "नाम जपो, कीर्त करो, वंड छाक" (ईश्वर का नाम जपो, ईमानदारी से कमाओ और जरूरतमंदों के साथ बाँटो) |
स्थापना | गुरुद्वारा (सामुदायिक केंद्र) और लंगर (सामुदायिक भोजन) की परंपरा |
उत्तराधिकारी | गुरु अंगद देव जी |
जयंती | प्रकाश पर्व या गुरु नानक जयंती |
उपदेश संग्रह | गुरु वाणी |
शिक्षाएं | गुरुबाणी |
गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़ी कुछ अनोखी और रोचक बातें जानते हैं:
जनेऊ पहनने से इनकार: बचपन में गुरु नानक देव जी ने जनेऊ (हिंदुओं में पहना जाने वाला पवित्र धागा) पहनने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वह अपनी सुरक्षा के लिए भगवान का सच्चा नाम अपने दिल में बसाएंगे। उनका मानना था कि बाहरी चीजों से सुरक्षा नहीं मिलती बल्कि आत्मिक जुड़ाव जरूरी है।
पहली कमाई का दान: 12 साल की उम्र में उनके पिता ने उन्हें 20 रुपये व्यापार करने के लिए दिए। गुरु नानक देव जी ने उन पैसों से भोजन खरीदा और जरूरतमंद लोगों में बाँट दिया। उनके पिता को व्यापार के बारे में पूछने पर उन्होंने ईश्वर की राह पर चलने की बात कही।
अंतरधार्मिक संवाद: गुरु नानक देव जी ने सिर्फ सिख धर्म का प्रचार नहीं किया बल्कि विभिन्न धर्मों के साथ संवाद स्थापित किया। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम धर्मग्रंथों का अध्ययन किया और उनमें से सर्वश्रेष्ठ सार को अपने उपदेशों में शामिल किया।
तीर्थ यात्राओं का अनोखा तरीका: अपनी यात्राओं के दौरान गुरु नानक देव जी ने परंपरागत तीर्थ यात्राओं को नहीं अपनाया। वो धार्मिक स्थलों पर जाने के बजाय वहां के लोगों से मिलते थे और उन्हें सच्चे ईश्वर की उपासना का संदेश देते थे।
गुरुद्वारे का स्वरूप: उन्होंने गुरुद्वारों को सिर्फ पूजा स्थल ही नहीं बनाया बल्कि उन्हें एक सामुदायिक केंद्र के रूप में स्थापित किया। वहां लंगर (सामुदायिक भोजन) की परंपरा शुरू कर उन्होंने समाज में समानता का भाव लाने का प्रयास किया।
चार म़ित्रों का साथ: गुरु नानक देव जी की यात्राओं में उनके चार मित्र - भाई मर्दाना (रबाब वादक), भाई लहना (उनके मसालेदार भोजन पसंद करने वाले), भाई बाला (उनके सेवक) और भाई रामदास (जो बाद में चौथे गुरु बने) हमेशा उनके साथ रहते थे। ये चार मित्र उनके संदेश को फैलाने में अहम भूमिका निभाते थे।
मृत्यु पर विवाद: गुरु नानक देव जी की मृत्यु के समय हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय उन्हें अपना मानते थे। दोनों ही समुदाय उनके अंतिम संस्कार की परंपरा के अनुसार विधि करना चाहते थे। कहते हैं कि वहां चादर हटाने पर सिर्फ फूल पाए गए। माना जाता है कि गुरु जी नहीं चाहते थे कि उनके जाने के बाद भी धर्मों में कोई भेदभाव रहे।
ये कुछ अनोखी बातें हैं जो गुरु नानक देव जी के जीवन को और भी रोचक बनाती हैं।
गुरु नानक देव जी के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. गुरु नानक देव जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा, 1469 ईस्वी में वर्तमान पाकिस्तान के तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था।
2. गुरु नानक देव जी को ईश्वरीय संदेश कैसे प्राप्त हुआ?
एक रात को ध्यान में लीन होने के दौरान गुरु नानक देव जी को ज्वलंत झाड़ी से ईश्वर की वाणी सुनाई दी। ईश्वर ने उन्हें अपना संदेश फैलाने और सत्य का मार्ग दिखाने का आदेश दिया।
3. गुरु नानक देव जी ने किन बातों का विरोध किया?
उन्होंने जाति-पाति भेदभाव, मूर्तियों की पूजा और धार्मिक आडंबरों का विरोध किया। उनका मानना था कि ईश्वर एक है और उसे पाने के लिए सच्ची भक्ति और कर्म ज़रूरी हैं।
4. सिख धर्म का मूल मंत्र क्या है?
गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म का मूल मंत्र दिया, "नाम जपो, कीर्त करो, वंड छाक" जिसका अर्थ है ईश्वर का नाम जपो, ईमानदारी से कमाओ और जरूरतमंदों के साथ बाँटो।
5. गुरुद्वारों की स्थापना किसने की और उनका क्या महत्व है?
गुरु नानक देव जी ने गुरुद्वारों की स्थापना की। ये सिर्फ पूजा स्थल ही नहीं बल्कि सामुदायिक केंद्र भी हैं। वहां लंगर (सामुदायिक भोजन) की परंपरा चलाई जाती है, जो सभी धर्मों और जातियों के लोगों के लिए समानता का भाव लाती है।
6. गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को क्या कहा जाता है?
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को "गुरुबाणी" के नाम से जाना जाता है। ये शिक्षाएँ गुरु वाणी नामक ग्रंथ में संकलित हैं।
7. गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्राओं में किन लोगों का साथ लिया?
अपनी यात्राओं के दौरान उनके चार मित्र - भाई मर्दाना (रबाब वादक), भाई लहना, भाई बाला और भाई रामदास (जो बाद में चौथे गुरु बने) उनके साथ रहते थे। ये चार मित्र उनके संदेश को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
8. गुरु नानक देव जी की मृत्यु के समय क्या हुआ?
गुरु नानक देव जी की मृत्यु के समय हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय उन्हें अपना मानते थे। दोनों ही समुदाय अपने धार्मिक रीति-रिवाजों से उनका अंतिम संस्कार करना चाहते थे। कहते हैं कि वहां चादर हटाने पर सिर्फ फूल पाए गए। माना जाता है कि गुरु जी नहीं चाहते थे कि उनके जाने के बाद भी धर्मों में कोई भेदभाव रहे।
9. गुरु नानक देव जी का सिख धर्म में क्या महत्व है?
गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक हैं। उन्होंने सिख धर्म के मूल सिद्धांतों को स्थापित किया और अपने उपदेशों के माध्यम से सहिष्णुता, मानवता और एक ईश्वर की उपासना का संदेश दिया। उनका जीवन और शिक्षाएँ आज भी सिखों के लिए मार्गदर्शक हैं।
10. हम गुरु नानक देव जी से क्या सीख सकते हैं?
गुरु नानक देव जी हमें ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा, कर्मठता, सहिष्णुता, मानवता और सामाजिक समानता का पाठ पढ़ाते हैं। उनका जीवन हमें यह सीख देता है कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए जाति, धर्म या बाहरी आडंबरों का कोई महत्व नहीं है, बल्कि सच्चा प्यार और सत्कर्म ही मायने रखते हैं।