हज़रत मूसा का जन्म और बचपन
हज़रत मूसा (Musa / Moses) का जन्म मिस्र (Egypt) में हुआ, जब फ़िरऔन का अत्याचारी शासन चल रहा था। फ़िरऔन ने यहूदियों के सभी नवजात बेटों को मरवाने का आदेश दिया था। मूसा की माँ ने ईश्वर पर भरोसा करते हुए उन्हें एक टोकरी में रखकर नील नदी में बहा दिया। ईश्वर की कृपा से वह टोकरी फ़िरऔन की पत्नी आसिया को मिली। उन्होंने इस बच्चे को गोद लिया और फ़िरऔन के राजमहल में मूसा की परवरिश हुई।
पैग़म्बरी और ईश्वरीय संदेश
युवावस्था में मूसा (अलैहिस्सलाम) को ज्वलंत झाड़ी (Burning Bush) से ईश्वर का संदेश प्राप्त हुआ। ईश्वर ने उन्हें फ़िरऔन के पास जाकर सत्य का संदेश पहुँचाने का आदेश दिया। मूसा को डर लगा, लेकिन ईश्वर ने उन्हें हिम्मत दी और उनके भाई हारून (Harun) को उनका सहायक बनाया।
फ़िरऔन से संघर्ष
हज़रत मूसा और हारून फ़िरऔन के दरबार में पहुँचे और उसे ईश्वर की इबादत करने का आदेश सुनाया। लेकिन फ़िरऔन ने इनकार कर दिया। ईश्वर ने मूसा को कई चमत्कार (miracles) दिए ताकि उसकी सच्चाई साबित हो सके:
- लाठी का सांप बन जाना
- नील नदी का खून में बदल जाना
- लाल सागर का चीर जाना
- चट्टान से पानी का निकलना
- मन्ना और सलवा (स्वर्गीय भोजन) का उतरना
मिस्र से मुक्ति
ईश्वर की आज्ञा से मूसा ने यहूदियों को गुलामी से निकाला। लाल सागर को चीरकर उन्होंने अपने लोगों के लिए सुरक्षित रास्ता बनाया। जब फ़िरऔन और उसकी सेना उनका पीछा करते हुए समुद्र में घुसी, तो वे डूबकर नष्ट हो गए।
सिनाई पर्वत और दस आज्ञाएँ
मिस्र से निकलने के बाद हज़रत मूसा Mount Sinai पहुँचे, जहाँ ईश्वर ने उन्हें Ten Commandments (दस आज्ञाएँ) दीं। ये आदेश नैतिक और धार्मिक जीवन के लिए आधार बने और आज भी यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म में पवित्र माने जाते हैं।
Ten Commandments in Hindi (हज़रत मूसा की दस आज्ञाएँ)
हज़रत मूसा (Moses / Musa Nabi) को Mount Sinai (सिनाई पर्वत) पर ईश्वर ने जो दस आज्ञाएँ दीं, वे इंसानियत के लिए नैतिक और धार्मिक जीवन का आधार हैं। इन्हें ही Ten Commandments या दस आज्ञाएँ कहा जाता है।
1. केवल एक ईश्वर की उपासना करो
ईश्वर के अलावा किसी और को पूज्य न मानो। Hazrat Musa commandments का पहला संदेश यही है कि ईश्वर एक है।
2. मूर्तियों और झूठे देवताओं की पूजा मत करो
सिर्फ सच्चे ईश्वर पर विश्वास करो, किसी भी मूर्ति या झूठे देवता की इबादत मत करो।
3. ईश्वर का नाम व्यर्थ मत लो
उसके नाम का इस्तेमाल हमेशा सम्मान और श्रद्धा के साथ करो।
4. विश्राम दिवस (Sabbath Day) को पवित्र मानो
सातवें दिन आराम करो और उसे ईश्वर की इबादत के लिए समर्पित करो।
5. अपने माता-पिता का आदर करो
माता-पिता की सेवा और सम्मान करने से जीवन में बरकत मिलती है।
6. हत्या मत करो
किसी की जान लेना सबसे बड़ा पाप है। जीवन की रक्षा करो।
7. व्यभिचार मत करो
पति-पत्नी के रिश्ते में निष्ठा बनाए रखो और पवित्रता का पालन करो।
8. चोरी मत करो
दूसरों की संपत्ति या वस्तु पर कब्ज़ा मत करो।
9. झूठी गवाही मत दो
सत्य बोलो और किसी निर्दोष के खिलाफ झूठ मत कहो।
10. लालच मत करो
दूसरों की पत्नी, घर, जमीन या संपत्ति पर लालच मत रखो।
कनान की ओर यात्रा
हज़रत मूसा ने यहूदियों को कनान (Canaan), यानी वादा की हुई भूमि की ओर ले जाने का प्रयास किया। हालांकि, वे स्वयं उस भूमि में प्रवेश नहीं कर पाए।
हज़रत मूसा की विरासत
हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) को इस्लाम, यहूदी और ईसाई तीनों धर्मों में महान पैग़म्बर के रूप में सम्मानित किया जाता है।
- उन्होंने यहूदियों को गुलामी से मुक्ति दिलाई।
- ईश्वर की उपासना और नैतिक जीवन जीने का तरीका सिखाया।
- दस आज्ञाओं के माध्यम से धार्मिक और सामाजिक नियम स्थापित किए।
उनका जीवन धैर्य, ईश्वर पर विश्वास और न्याय की मिसाल है।
फ़िरऔन पर ईश्वरीय विपत्तियाँ (Musalsalat Al-Adhab)
जब फ़िरऔन ने मूसा का संदेश नकारा, तो ईश्वर ने मिस्र पर दस विपत्तियाँ भेजीं:
- नील नदी का पानी खून बन गया
- मेढकों की बाढ़
- जूंओं का प्रकोप
- जंगली जानवरों का आतंक
- मवेशियों की महामारी
- फोड़े-फुंसियाँ
- भयंकर आंधी-तूफान
- टिड्डी दल ने फसलें खा लीं
- तीन दिन का अंधकार
- पहिलौठों की मौत
इन घटनाओं के बाद फ़िरऔन ने हार मान ली और यहूदियों को जाने दिया।

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