हावड़ा ब्रिज के अनोखे तथ्य Howrah Bridge Facts
बिना नट-बोल्ट का पुल: ये बात सुनकर आपको शायद ताज्जुब होगा लेकिन हावड़ा ब्रिज को बनाने में एक भी नट या बोल्ट का इस्तेमाल नहीं किया गया है! इसका निर्माण कैंटिलीवर शैली में किया गया है, जहाँ स्टील के विशाल टुकड़ों को एक दूसरे में फिट किया गया है.
पहला नाम "नया हावड़ा पुल": हालांकि आज हम इसे हावड़ा ब्रिज के नाम से जानते हैं, लेकिन इसे मूल रूप से "नया हावड़ा पुल" (New Howrah Bridge) कहा जाता था. ये नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि ये उसी जगह पर बनाया गया था, जहां पहले एक पीपे का पुल हुआ करता था.
- टॉटा स्टील का योगदान: हावड़ा ब्रिज के निर्माण में लगने वाले 26,500 टन स्टील में से 23,500 टन टाटा स्टील द्वारा आपूर्ति किया गया था. भारतीय कंपनी का इस ऐतिहासिक पुल में ये महत्वपूर्ण योगदान था.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी हुआ निर्माण: हालाँकि हावड़ा ब्रिज का निर्माण 1936 में शुरू हुआ था और 1942 में पूरा हुआ था, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी इसका निर्माण कार्य जारी रहा. दुश्मन के हवाई हमलों के बावजूद इसे बनाने का काम रुका नहीं था.
उद्घाटन नहीं हुआ!: यह जानकर आपको शायद और भी आश्चर्य होगा कि हावड़ा ब्रिज का औपचारिक उद्घाटन आज तक नहीं हुआ है! इसे 1943 में जनता के लिए खोल दिया गया था, लेकिन कोई उद्घाटन समारोह आयोजित नहीं किया गया.
कवि के नाम पर रखा गया नाम: 1965 में हावड़ा ब्रिज का नाम बदलकर कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर के सम्मान में "रवींद्र सेतु" कर दिया गया. लेकिन हावड़ा ब्रिज का नाम आज भी अधिक लोकप्रिय है.
हर रोज़ लाखों का सफर: हावड़ा ब्रिज कोलकाता की जीवन रेखा है. हर रोज़ लगभग 1 लाख गाड़ियां और 1.5 लाख पैदल यात्री इस पुल से होकर गुजरते हैं.

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