चिंपू की चालाकी
चिंपू नाम की एक चतुर चिम्पैंजी चिड़ियाखाने में रहती थी. हर दिन उसे वही लोहे के पिंजरे का नजारा, वही घूमने आने वाले शोरगुल वाले लोग और वही बचे हुए फल और सब्जियां मिलती थीं. चिंपू इससे ऊब चुकी थी. उसे जंगल की खुली हवा, ऊंचे पेड़ों पर चढ़ना और स्वादिष्ट मेवे खाना याद आता था.
एक दिन चिंपू ने देखा कि चिड़ियाखाने का एक रखवाला अपना खाना खुलेआम रखकर पिंजरे की सफाई कर रहा था. चिंपू के दिमाग में एक चाल आया. उसने अपने पिंजरे के कोने में रखे एक पत्थर को उठाया और ध्यान से निशाना लगाकर रखवाले के सिर पर दे मारा. रखवाला चीखते हुए वहां से भागा.
जब रखवाला वापस आया तो उसने देखा कि उसका सैंडविच गायब है. चिंपू पिंजरे के बीच में मस्ती से सैंडविच खा रही थी. रखवाले को गुस्सा आया मगर चिंपू की चालाकी देखकर उसे हंसी भी आ गई. उसने सोचा, "यह चिंपैंजी तो वाकई बहुत तेज है!"
अगले दिन, चिंपू ने देखा कि रखवाला फिर से अपना खाना खुला रखकर पिंजरे की सफाई कर रहा है. इस बार चिंपू ने थोड़ा अलग तरीका अपनाया. उसने पिंजरे की जाली से एक टूटी हुई तिन की चादर निकाली और उसे मोड़कर एक चाबी का आकार दिया. फिर उसने अपने पिंजरे का ताला खोलने का नाटक किया.
रखवाला हैरान होकर चिंपू को देखने लगा. चिंपू ने यह मौका देखा और पिंजरे से बाहर निकलकर सैंडविच चुरा ली. रखवाला फिर से चीखता हुआ भागा. थोड़ी देर बाद वापस आया तो चिंपू पिंजरे के अंदर ही थी, मानो कुछ हुआ ही न हो. रखवाला समझ गया कि चिंपू ने उसे फिर से छल लिया है.
चिंपू की हरकतों से चिड़ियाखाने में सब खुश थे. चिंपू उन्हें हंसाती थी और यह याद दिलाती थी कि जानवरों में भी कितनी चतुराई होती है. चिंपू को भले ही जंगल की आजादी न मिली, लेकिन उसकी चालाकी ने चिड़ियाखाने का माहौल खुशनुमा बना दिया.

Comments (0)