जैसी करनी वैसी भरनी: कर्मों की दस लघु कहानियाँ! Jaisi Karni Vaisi Bharni Short Stories With Moral
क्या आपने कभी सुना है "जैसी करनी वैसी भरनी" (Jaisi Karni Vaisi Bharni)? यह लेख इसी कहावत को जीवंत करता है, दस छोटी कहानियों के माध्यम से। ये कहानियां उन पात्रों का सफर दिखाती हैं, जो अपने कर्मों का फल भोगते हैं, अच्छे और बुरे दोनों तरह के।

कहानियाँ Last Update Sun, 20 April 2025, Author Profile Share via
जैसी करनी वैसी भरनी: कर्मों की 10 कहानियाँ
कहानी 1: दयालु और परोपकारी रमा
एक बार की बात है, एक गाँव में रमा नाम की एक लड़की रहती थी। रमा दयालु और परोपकारी स्वभाव की थी। वह हमेशा जरूरतमंदों की मदद करती थी। एक दिन, रमा जंगल से लकड़ी इकट्ठा कर रही थी, तभी उसे एक बूढ़ी औरत दिखाई दी। बूढ़ी औरत थकी हुई और भूखी थी। रमा ने उसे अपने घर ले जाकर खाना और पानी दिया। बूढ़ी औरत रमा की दयालुता से बहुत प्रभावित हुई। उसने रमा को एक जादुई बीज दिया और कहा, "यह बीज तुम्हारी दयालुता का फल देगा। इसे अपने बगीचे में लगाओ और इसकी अच्छी देखभाल करो।"
रमा ने बूढ़ी औरत का धन्यवाद किया और बीज को अपने बगीचे में लगा दिया। रमा ने बीज की बहुत अच्छी देखभाल की। रोज सुबह, वह उसे पानी देती और उसकी मिट्टी को ढीला करती। कुछ ही दिनों में, बीज अंकुरित हो गया और एक सुंदर पौधा बन गया। पौधे पर खूबसूरत फूल खिले। रमा बहुत खुश थी।
कुछ दिनों बाद, रमा ने देखा कि पौधे पर एक फल लगा है। फल बहुत बड़ा और सुंदर था। रमा ने फल को तोड़ा और उसे अंदर ले गई। उसने फल को काटा और देखा कि उसके अंदर सोने के सिक्के भरे हुए हैं।
रमा बहुत खुश थी। उसे एहसास हुआ कि जैसी करनी वैसी भरनी। उसने अपनी दयालुता से दूसरों की मदद की और उसे बदले में फल मिला।
नैतिकता: जैसी करनी वैसी भरनी। हम जो कर्म करते हैं, उसका फल हमें जरूर मिलता है।
कहानी 2: लालच का फल (लघु कथा)
रामनगर नाम का एक छोटा सा गाँव था, जहाँ लोग सादगी से जीवन बिताते थे। वहीं गाँव के बीचों-बीच रमेश की एक किराने की दुकान थी। बाहर से देखने पर रमेश मुस्कराता था, पर अंदर से वह बहुत चालाक और लालची था।
जब भी कोई ग्राहक आता, वह चुपके से तौल में थोड़ा सामान कम कर देता और कहता,
"अरे भाई, माल महंगा हो गया है, थोड़ा बहुत तो चलता है!" ग्राहक कुछ कह नहीं पाते और चुपचाप चले जाते। रमेश हर दिन सोचता, "मैं सबसे ज़्यादा कमाई कर रहा हूँ। मैं सबसे होशियार हूँ!" लेकिन समय कभी एक जैसा नहीं रहता।
एक दिन गाँव में सुरेश नाम का एक नया दुकानदार आया। उसकी मुस्कान सच्ची थी और उसका दिल भी। वह कहता, "ईमानदारी से कमाया गया पैसा ही असली कमाई है।" सुरेश हर ग्राहक का स्वागत करता, सही तौल देता, और कभी झूठ नहीं बोलता।
धीरे-धीरे लोग रमेश की दुकान से मुँह मोड़ने लगे। रमेश की दुकान में अब सिर्फ मक्खियाँ भिनभिनाती थीं। उसका सामान धूल पकड़ने लगा, और उसकी कमाई दिन-ब-दिन घटती चली गई।
एक दिन रमेश अकेला दुकान में बैठा था, बहुत उदास और थका हुआ। उसे अपने लालच और धोखेबाज़ी पर पछतावा हुआ। वह सोचने लगा, "काश मैंने भी ईमानदारी से काम किया होता..."
नैतिकता: लालच और धोखा कभी भी ज्यादा दिन तक नहीं टिकते। जो जैसा करता है, वैसा ही फल उसे ज़रूर मिलता है।
कहानी 3: ईर्ष्यालु मोर और मेहनती चिड़िया
जंगल में एक खूबसूरत मोर रहता था। उसके पास रंगीन पंख थे, लेकिन वह बहुत ईर्ष्यालु था। वह हमेशा दूसरे पक्षियों की खूबियों से जलता था।
एक दिन, मोर ने एक छोटी सी चिड़िया को देखा जो बहुत मेहनत से घोंसला बना रही थी। मोर ने चिड़िया से पूछा, "तुम इतनी मेहनत क्यों कर रही हो? तुम्हारा घोंसला इतना छोटा और साधारण है।"
चिड़िया ने जवाब दिया, "मैं अपने बच्चों के लिए एक सुरक्षित घर बना रही हूं। भले ही मेरा घोंसला छोटा हो, लेकिन यह प्यार और मेहनत से बना है।"
मोर चिड़िया की बातों से और भी ज्यादा जल गया। उसने सोचा कि वह चिड़िया से भी ज्यादा खूबसूरत घोंसला बनाएगा। उसने जंगल से सबसे चमकदार पत्ते और फूल इकट्ठा किए। उसने घोंसला बनाने में जल्दबाजी की और उसे ठीक से मजबूत नहीं बनाया।
कुछ दिनों बाद, तेज हवा चली। मोर का घोंसला हवा में उड़ गया । मोर को बहुत दुख हुआ। उसे एहसास हुआ कि सिर्फ दिखावे से फायदा नहीं होता। मेहनत और लगन से किया गया काम ही सफल होता है।
नैतिकता: जैसी करनी वैसी भरनी। हमें दूसरों से जलने के बजाय मेहनत करनी चाहिए। ईर्ष्या से कभी कुछ हासिल नहीं होता।
कहानी 4: घमंड का अंजाम
जंगल में पिंकू और घीसू नाम के दो हिरण रहते थे। दोनों अच्छे दोस्त थे। पिंकू बहुत निडर था, जबकि घीसू थोड़ा संकोची और सतर्क। एक दिन दोनों जंगल में घूम रहे थे। हरियाली का आनंद लेते-लेते वो एक बड़े नीम के पेड़ के पास पहुंचे। वहाँ देखा कि एक भयानक शेर पेड़ के नीचे गहरी नींद में सो रहा था। घीसू की तो जैसे साँस अटक गई। उसने धीरे से पिंकू से कहा, “चल यार, यहाँ से चुपचाप निकलते हैं… ये शेर कभी भी जाग सकता है।”
लेकिन पिंकू तो अपने हिम्मत के घमंड में चूर था। वो बोला, “तू हमेशा डरता है घीसू! मैं तो किसी शेर-वेर से नहीं डरता। देख कैसे सोया है, जैसे कोई बिल्ली हो!” घीसू चुप रहा। उसे पता था कि ज्यादा बोलना बेकार है। लेकिन पिंकू को उसका चुप रहना अच्छा नहीं लगा। उसने समझा कि घीसू उसकी बहादुरी से जल रहा है।
गुस्से में पिंकू बोला, “अब देख, मैं क्या करता हूँ!” और वो सीधा शेर के पास गया… और उसके मुँह पर एक जोर की लात मार दी! शेर की नींद टूटी, और उसकी आँखों में आग सी जलने लगी। उसने एक ही झपट्टे में पिंकू पर हमला कर दिया। पलक झपकते ही… पिंकू का अंत हो गया।
ये देखकर घीसू के तो पैर कांपने लगे। लेकिन वो खुद को संभालते हुए बिजली की रफ्तार से भागा। बहुत दूर जाकर जब वो रुका, उसके मुँह से सिर्फ एक ही बात निकली—
"जैसी करनी, वैसी भरनी... ये तो बिलकुल सही कहा है!"
कहानी 5: मदद का फल
टिंकू और झुनझुन दो नन्हे खरगोश थे। दोनों एक ही खेत में रहते थे और बहुत अच्छे दोस्त थे। टिंकू थोड़ा चंचल और समझदार था, जबकि झुनझुन शांत और भोला था।
एक दिन खेत में तेज़ आंधी आई। चारों ओर धूल ही धूल फैल गई। उस दिन झुनझुन का छोटा भाई मिट्ठू खेत में कहीं खो गया। झुनझुन बहुत परेशान था। वह इधर-उधर दौड़ता रहा, लेकिन भाई नहीं मिला।
जब टिंकू को यह बात पता चली, तो उसने एक पल भी देर नहीं की। वो सीधे बगल के जंगल की ओर दौड़ा, जहाँ अक्सर छोटे जानवर भटक जाते थे। थोड़ी देर की खोजबीन के बाद, उसे मिट्ठू एक झाड़ी के पीछे डरा-सहमा मिला।
टिंकू ने मिट्ठू को कंधे पर बैठाया और सुरक्षित घर ले आया। झुनझुन की आँखें नम हो गईं। "टिंकू, तुमने मेरी दुनिया लौटा दी," उसने कहा।
समय बीतता गया। एक दिन टिंकू खेलते-खेलते एक फंदे में फँस गया, जो कुछ शिकारी खेत में लगाकर गए थे। वह छटपटाने लगा, लेकिन फंदा बहुत मज़बूत था। झुनझुन ने जब देखा कि टिंकू मुसीबत में है, तो बिलकुल नहीं घबराया। वह दौड़कर गाँव के बिल्लू हाथी को बुला लाया, जिसने अपने मजबूत सूंड से फंदा तोड़ा और टिंकू को आज़ाद किया।
टिंकू बहुत भावुक हो गया। "झुनझुन, तुमने मेरी जान बचा ली।" झुनझुन मुस्कराया और बोला — “भाई, जैसी करनी वैसी भरनी… तुमने मेरे भाई के लिए जो किया था, आज उसका बदला चुका पाया।”
नैतिकता: अच्छाई लौटकर जरूर आती है। जो दूसरों की मदद करता है, उसकी मदद भी वक़्त पर होती है।
कहानी 6: चालाक कौआ और मेहनती चींटी
एक पेड़ पर एक चालाक कौआ रहता था। वह मेहनत करना पसंद नहीं करता था। वह हमेशा दूसरों से चीजें छीनकर अपना पेट भरता था। जमीन पर चींटियों की एक कतार चींटी की रानी के लिए भोजन इकट्ठा कर रही थी।
कौआ नीचे उतरा और चींटियों से पूछा, "तुम इतनी मेहनत क्यों कर रही हो? मैं तो बिना मेहनत किए भी खाना ढूंढ लेता हूं।"
चींटी की रानी ने जवाब दिया, "हम सर्दियों के लिए भोजन का ज़ख़ीरा इकट्ठा कर रही हैं। मेहनत का फल मीठा होता है।"
कौआ चींटी की बातों पर हंसा और उड़ गया। गर्मियों में भरपूर भोजन मिलता रहा, लेकिन सर्दियां आते ही भोजन की कमी हो गई। कौआ भूखा रहने लगा। उसने चींटियों के पास जाने का फैसला किया।
वह चींटी की रानी के पास गया और भोजन मांगा। चींटी की रानी ने पूछा, "गर्मियों में तुमने मेहनत क्यों नहीं की?" कौआ को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने माफी मांगी और कहा कि वह अब से मेहनत करेगा।
चींटी की रानी ने उसे थोड़ा सा भोजन दिया और कहा, "जैसी करनी वैसी भरनी। मेहनत का फल ही भविष्य में काम आता है।" कौआ मेहनत करने का पाठ सीख गया।
कहानी 7: सच्चा लड़का और झूठा चरवाहा
एक गाँव में एक सच्चा लड़का रहता था। वह हमेशा सच बोलता था, चाहे उसे कोई भी परेशानी क्यों न हो। गाँव में एक चरवाहा भी रहता था, जो अक्सर झूठ बोलता था।
एक दिन, चरवाहा खेतों में भेड़ों को चरा रहा था। उसे गाँववालों को परेशान करने का मजा आया। उसने जोर से चिल्लाया, "बचाओ! बचाओ! भेड़िया आया!"
गाँव वाले उसकी मदद के लिए दौड़ पड़े। लेकिन वहां कोई भेड़िया नहीं था। चरवाहा उनकी मूर्खता पर हंसा। कुछ दिनों बाद, चरवाहा ने फिर वही खेल खेला।
इस बार भी गाँव वाले उसकी मदद के लिए आए, लेकिन वहां कोई भेड़िया नहीं था। गाँव वाले गुस्से में थे। उन्होंने चरवाहे पर विश्वास करना बंद कर दिया।
एक दिन, असली में भेड़िया खेतों में आ गया। चरवाहा बहुत डरा हुआ था। उसने चिल्लाकर मदद मांगी, लेकिन इस बार कोई भी उसकी बात नहीं माना। भेड़िया ने कई भेड़ों को मार डाला।
चरवाहे को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने सीखा कि जैसी करनी वैसी भरनी। झूठ बोलने का कभी फायदा नहीं होता।
कहानी 8: दयालु डॉक्टर और लालची दुकानदार
शहर में एक दयालु डॉक्टर रहता था। वह गरीबों का मुफ्त इलाज करता था। शहर में ही एक लालची दुकानदार भी रहता था। वह हमेशा दूसरों को धोखा देकर ज्यादा पैसा कमाने की कोशिश करता था।
एक दिन, डॉक्टर बीमार पड़ गया। वह दवा लेने के लिए दुकानदार की दुकान पर गया। दुकानदार ने डॉक्टर को पहचाना और उसे धोखा देने का मौका देख लिया। उसने डॉक्टर को नकली दवा बेच दी।
डॉक्टर को दवा खाने के बाद भी आराम नहीं मिला। उसकी हालत और खराब हो गई। उसकी पत्नी उसे दूसरे डॉक्टर के पास ले गई। दूसरे डॉक्टर ने बताया कि उसे नकली दवा दी गई है।
डॉक्टर को दुकानदार की चालाकी का पता चल गया। उसने पुलिस को बुला लिया। पुलिस ने दुकानदार को गिरफ्तार कर लिया। दुकानदार को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसे जेल जाना पड़ा और अपना सारा धंधा बंद करना पड़ा।
इस घटना के बाद, सभी को पता चल गया कि जैसी करनी वैसी भरनी। लालच का फल कभी अच्छा नहीं होता। डॉक्टर जल्दी स्वस्थ हो गया और गरीबों की सेवा करता रहा। शहर के लोगों ने डॉक्टर की ईमानदारी की बहुत प्रशंसा की।
कहानी 9: घमंडी हाथी और मेहनती चींटी
जंगल में एक विशालकाय हाथी रहता था। उसे अपनी ताकत पर बहुत घमंड था। वह हमेशा दूसरों को कमज़ोर समझता था। एक दिन, जंगल में सूखा पड़ गया। पानी की कमी हो गई।
सभी जानवर परेशान थे। एक छोटी सी चींटी पानी की तलाश में इधर-उधर भाग रही थी। हाथी ने चींटी को देखा और उसका मजाक उड़ाया। "तुम इतनी छोटी सी चींटी पानी कहां ढूंढ पाओगी?"
चींटी ने हाथी को जवाब दिया, "मैं मेहनत करके पानी ढूंढ लूंगी। घमंड से कोई फायदा नहीं होता।" हाथी चींटी की बातों पर हंसा और एक पेड़ के नीचे आराम करने चला गया।
चींटी ने हार नहीं मानी। वह सूंघते हुए जमीन पर चलती रही। आखिरकार, उसे दूर एक छोटा सा कुआं दिखाई दिया। चींटी खुशी से वापस जंगल की तरफ दौड़ी।
जंगल में पहुंचकर, चींटी ने सभी जानवरों को पानी के बारे में बताया। सभी जानवर चींटी के पीछे कुएं तक गए। हाथी को भी प्यास बहुत तेज लग रही थी। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।
कुएं से पानी निकालना मुश्किल था। सभी जानवरों ने मिलकर मेहनत की। हाथी ने अपनी सूंड का इस्तेमाल करके पानी निकाला। आखिरकार, सभी जानवरों को पानी मिल गया।
हाथी ने चींटी से माफी मांगी। उसने सीखा कि जैसी करनी वैसी भरनी। घमंड से कोई फायदा नहीं होता, बल्कि मेहनत और सहयोग से ही मुश्किलों को पार किया जा सकता है।
कहानी 10: चिंटू मुर्गा और नकली बांग
एक गांव में चिंटू नाम का मुर्गा रहता था। वो बड़ा घमंडी था क्योंकि उसे लगता था कि उसकी आवाज़ सबसे ज़्यादा सुरीली है। हर सुबह वो पूरे गांव में सबसे पहले बांग देता और खुद को "गांव का अलार्म" कहता।
लेकिन धीरे-धीरे चिंटू को दूसरों की तारीफें सुनकर घमंड हो गया। वो अब जान-बूझकर देर से बांग देता, जिससे लोग देर से उठते और खेतों में देर से पहुंचते। कई बार तो वो मज़े के लिए झूठी बांग भी देता – रात को ही चिल्ला देता, जिससे सब लोग परेशान हो जाते। गांव वाले कई बार उसे समझाते, लेकिन वो सबकी बात हंसी में उड़ा देता।
एक दिन गांव में एक नया मुर्गा आया – नाम था टिम्मी। वो शांत स्वभाव का था और सही समय पर बांग देता। धीरे-धीरे लोग टिम्मी की तारीफ करने लगे।
चिंटू को यह बात बिलकुल पसंद नहीं आई। उसने टिम्मी को नीचा दिखाने के लिए रात में बांग देना शुरू कर दिया, जिससे गांव वाले फिर से परेशान हो गए। गांव के बुज़ुर्गों ने सोचा कि अब कुछ करना होगा। उन्होंने एक योजना बनाई।
अगली रात, जैसे ही चिंटू ने बांग दी, गांव वाले उठे नहीं। बल्कि सब टिम्मी की बांग का इंतज़ार करने लगे। कुछ ही दिनों में चिंटू को गांव वालों ने ध्यान देना बंद कर दिया। अब ना उसकी आवाज़ सुनी जाती, ना कोई उसकी परवाह करता। वो उदास रहने लगा।
टिम्मी ने चिंटू को समझाया, “भाई, आवाज़ सुरीली हो या ना हो, समय पर होनी चाहिए। दूसरों की नींद और समय से खेलना ठीक नहीं होता।”
चिंटू ने शर्मिंदा होकर माफ़ी मांगी और वादा किया कि अब वो समय पर बांग देगा और किसी को परेशान नहीं करेगा।
नैतिक शिक्षा: अगर हम दूसरों के समय और विश्वास से खेलते हैं, तो एक दिन लोग हमें सुनना ही बंद कर देते हैं। जैसी करनी, वैसी भरनी।