लकड़हारा और सोने की कुल्हाड़ी – एक प्रेरणादायक हिन्दी कहानी A Short Story With Moral
"लकड़हारा और सोने की कुल्हाड़ी" की प्रेरणादायक कहानी बच्चों को ईमानदारी और सच्चाई का महत्व सिखाती है। सरल भाषा में लिखी गई यह कहानी नैतिक शिक्षा और मन को छूने वाली सीख से भरपूर है।

कहानियाँ Last Update Sat, 19 April 2025, Author Profile Share via
लकड़हारा और सोने की कुल्हाड़ी
बहुत समय पहले की बात है। एक छोटा-सा गाँव था, जहाँ जंगल के किनारे एक ईमानदार लकड़हारा रहता था। उसका जीवन बेहद साधारण था—हर सुबह सूरज उगने से पहले वह अपने पुराने, थोड़े से टूटे हुए कुल्हाड़ी को कंधे पर रखकर जंगल की ओर निकल जाता। दिनभर वह पसीने से भीगा रहता, पेड़ों की लकड़ियाँ काटता और फिर उन्हें पास के बाज़ार में बेचता, जिससे उसका और उसके परिवार का गुज़ारा चलता।
लकड़हारा गरीब ज़रूर था, मगर उसका दिल बहुत बड़ा था। वह हमेशा सच बोलता, मेहनत करता और किसी के साथ धोखा नहीं करता। उसकी यही सच्चाई और मेहनत भगवान को भी पसंद थी।
एक दिन की बात है—जैसे ही वह नदी के किनारे एक पेड़ को काटने गया, उसका पैर फिसला और उसकी कुल्हाड़ी सीधे पानी में गिर गई। वह घबरा गया, क्योंकि वही कुल्हाड़ी उसकी रोज़ी-रोटी का एकमात्र सहारा थी। वह बैठकर आँसू बहाने लगा और भगवान से प्रार्थना करने लगा, “हे भगवान! मेरी मदद करो। मैं अब क्या करूँ?”
तभी नदी से एक दिव्य प्रकाश उठा। जल की चमक के बीच एक देवदूत प्रकट हुए और बोले, “तुम क्यों रो रहे हो, लकड़हारे?”
लकड़हारे ने सच्चाई से सब कुछ बता दिया। देवदूत मुस्कराए और नदी में डुबकी लगाकर एक सोने की कुल्हाड़ी बाहर निकाली। उन्होंने पूछा, “क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”
लकड़हारा तुरंत बोला, “नहीं महाराज, यह मेरी नहीं है। मेरी कुल्हाड़ी लोहे की है, थोड़ी पुरानी और जंग लगी हुई।”
देवदूत ने दोबारा नदी में डुबकी लगाई और अब एक चाँदी की कुल्हाड़ी लेकर निकले। उन्होंने फिर पूछा, “क्या यह तुम्हारी है?”
लकड़हारा फिर सिर हिलाते हुए बोला, “नहीं महाराज, यह भी मेरी नहीं है।”
आखिरकार तीसरी बार, देवदूत ने उसकी वही पुरानी लोहे की कुल्हाड़ी निकालकर दिखाई। लकड़हारे की आँखों में चमक आ गई—“हाँ, यही मेरी है!”
देवदूत उसकी ईमानदारी से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने इनाम स्वरूप तीनों कुल्हाड़ियाँ—सोने, चाँदी और लोहे की—उसे दे दीं।
लकड़हारे ने नम्रता से सिर झुकाया और कहा, “मैं केवल मेहनत से कमाई हुई चीज़ का ही हकदार हूँ। मगर आज आपने मुझे दिखा दिया कि ईमानदारी का फल हमेशा मीठा होता है।”
लकड़हारा और सोने की कुल्हाड़ी: कहानी से सीख
ईमानदारी और मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती। चाहे दुनिया कितनी भी कठिन क्यों न हो, अगर आपका दिल सच्चा है और कर्म शुद्ध हैं, तो भगवान भी आपकी मदद करने ज़रूर आएंगे।