टूटा हुआ पंख और टूटा हुआ हौसला
राहुल एक होनहार कलाकार था, जिसके हाथों से जादू निकलता था। उसकी पेंटिंग्स इतनी जीवंत होती थीं कि देखने वाला उनमें खो जाता था। लेकिन राहुल का आत्मविश्वास कमजोर था। वह हमेशा अपनी कला में कोई न कोई कमी निकाल लेता और निराश हो जाता।
घायल चील और जगा आत्मविश्वास
एक दिन राहुल निराश होकर पहाड़ों पर घूम रहा था। थककर उसने एक चट्टान पर बैठकर नीचे घाटी को निहारना शुरू किया। अचानक उसकी नजर एक घायल चील पर पड़ी, जो एक पेड़ की टहनी पर बैठा था। चील का एक पंख टूटा हुआ था और वह असहाय भाव से नीचे देख रहा था। राहुल को उस चील पर बहुत तरस आया।
वह किसी तरह चील के पास पहुंचा और उसे संभाला। उसने चील के घाव को साफ किया और पंख को पट्टी से बांधा। राहुल हर दिन चील की देखभाल करने लगा। चील धीरे-धीरे चील ठीक होने लगा। राहुल चील से बातें करता और उसे उड़ने के लिए प्रोत्साहित करता।
नया सवेरा, नई उड़ान
एक सुबह राहुल जगा तो देखा चील पेड़ की टहनी पर बैठा है। उसका टूटा हुआ पंख अब पूरी तरह से ठीक हो चुका था। राहुल की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। उसने चील को उड़ने का इशारा किया। चील अपने पंख फैलाए और हवा में ऊंचा उड़ गया। आकाश में उड़ते हुए चील एकदम स्वतंत्र और शक्तिशाली लग रहा था।
चील को उड़ते देखकर राहुल को अचानक एहसास हुआ। उसने सोचा, "अगर यह घायल चील भी हार न मानकर उड़ना सीख सकता है, तो मैं क्यों नहीं? मेरी कला में भी तो वही ताकत है, वही उड़ान है। बस उसे पहचानने की जरूरत है।"
रंगों में नया विश्वास
उस दिन राहुल ने एक नई पेंटिंग शुरू की। इस बार वह पूरे विश्वास के साथ रंग भर रहा था। उसने उस चील को भी अपनी पेंटिंग में उकेरा, जो अब आकाश में ऊंची उड़ान भर रहा था। पेंटिंग बनकर तैयार हुई तो वह अद्भुत थी। उसमें रंगों का ऐसा जादू था, जो देखने वाले को मंत्रमुग्ध कर देता था।
उस पेंटिंग को देखकर राहुल को पहली बार अपनी कला पर गर्व हुआ। उसने समझ लिया कि हर किसी में प्रतिभा होती है, जरूरत होती है सिर्फ आत्मविश्वास की और हार न मानने की हिम्मत की। राहुल की यह पेंटिंग बहुत प्रसिद्ध हुई और उसने एक सफल कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाई।