सम्राट अशोक: चक्रवर्ती सम्राट और बौद्ध धर्म के प्रचारक! Biography of Samrat Ashoka in Hindi with FAQs
सम्राट अशोक, जिन्हें "चक्रवर्ती सम्राट" के नाम से भी जाना जाता है, मौर्य साम्राज्य के सबसे महान शासकों में से एक थे। उनका शासनकाल ईसा पूर्व 268 से ईसा पूर्व 232 तक रहा, और इस दौरान उन्होंने न केवल एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया, बल्कि बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आइए उनके जीवन और कारनामों पर विस्तार से नज़र डालें:

जीवनी Last Update Fri, 13 June 2025, Author Profile Share via
सम्राट अशोक का प्रारंभिक जीवन और सत्ता में वृद्धि:
- अशोक का जन्म मौर्य सम्राट बिंदुसार के पुत्रों में से एक के रूप में हुआ था। उनकी जन्म तिथि अज्ञात है, लेकिन माना जाता है कि वह अपने सौ से अधिक भाइयों में से एक थे।
- युवावस्था में, उन्हें उज्जैन प्रांत का प्रशासक नियुक्त किया गया था।
- कलिंग युद्ध (ईसा पूर्व 261), जो उस समय के इतिहास में सबसे खूनी युद्धों में से एक था, में उनकी भूमिका विवादित है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उन्होंने सेनापति के रूप में युद्ध का नेतृत्व किया, जबकि अन्य का मानना है कि वह युद्ध के दौरान वहां मौजूद नहीं थे।
- युद्ध की भयावहता से अशोक गहराई से प्रभावित हुए और उन्होंने हिंसा का त्याग करने और बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला किया।
सम्राट अशोक का बौद्ध धर्म को अपनाना और प्रचार:
- कलिंग युद्ध के बाद, अशोक बौद्ध धम्म के अनुयायी बन गए। धम्म, जिसका अर्थ "कर्तव्य" या "पवित्र जीवन" होता है, नैतिकता और अहिंसा पर केंद्रित है।
- उन्होंने पूरे भारत में शिलालेख और स्तंभ खड़े करके बौद्ध धर्म के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये शिलालेख धम्म के सिद्धांतों का वर्णन करते हैं और लोगों को अहिंसा, सत्यता, दान और दयालुता का पालन करने का उपदेश देते हैं।
- उन्होंने बौद्ध धर्म को फैलाने के लिए मिशनरियों को भी विदेशों में भेजा।
सम्राट अशोक का शासन और प्रशासन:
- अशोक एक धर्मात्मा और कल्याणकारी शासक थे। उन्होंने अपने साम्राज्य में शांति और समृद्धि कायम करने के लिए कई कदम उठाए।
- उन्होंने सड़कों, कुओं और चिकित्सालयों का निर्माण करवाया।
- उन्होंने अपने साम्राज्य में रहने वाले सभी लोगों के कल्याण के लिए कानून बनाए।
- उन्होंने जानवरों के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया और वनस्पति के संरक्षण के लिए कदम उठाए।
सम्राट अशोक की विरासत:
सम्राट अशोक को इतिहास में भारत के सबसे महान शासकों में से एक माना जाता है। उन्हें बौद्ध धर्म के प्रचारक के रूप में और एक ऐसे शासक के रूप में जाना जाता है जिसने अपने लोगों के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उनके शिलालेख प्राचीन भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत हैं और आज भी उनकी धार्मिक सहिष्णुता और अहिंसा का संदेश प्रासंगिक है।
सम्राट अशोक: महत्वपूर्ण जानकारी
जानकारी | विवरण |
शासनकाल | लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक |
साम्राज्य | मौर्य साम्राज्य (भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्से) |
पूर्ववर्ती (Predecessor) | चंद्रगुप्त मौर्य |
उत्तराधिकारी | ब्रह्मदत्त |
उपाधियाँ | चक्रवर्ती, धर्मराज, पियदसी (प्यारे रूप में देखने वाला) |
धर्म | बौद्ध धर्म (कलिंग युद्ध के बाद अपनाया) |
धर्म प्रचार | बौद्ध धर्म का प्रसार |
अहिंसा और शांति | युद्धों का विरोध और शांति स्थापना (कलिंग युद्ध के बाद अपनाया) |
राज्य व्यवस्था | कुशल प्रशासन और जनकल्याण के कार्य |
धर्म स्तंभ | धर्म उपदेशों वाले स्तंभों का निर्माण |
शिलालेख | विचारों और नीतियों को जनता तक पहुंचाना |
सम्राट अशोक: भारतीय इतिहास का शांतिदूत और धर्मशास्त्रकार
सम्राट अशोक, भारतीय इतिहास के ऐसे नायक जिनकी कहानी ने हमें एक नए दृष्टिकोण से अपने राजनीतिक और धार्मिक प्राणों को समझने का अवसर दिया।
बचपन से लेकर सिकंदर तक: अशोक का जीवन एक रोमांचक कहानी से कम नहीं था। उनका बचपन संघर्ष और सीखों से भरा था, जिसने उन्हें एक शक्तिशाली और न्यायप्रिय शासक बनने की दिशा में मार्गदर्शन किया। उनकी यात्रा अलेक्जेंडर से मिलकर उन्हें एक महान सेनापति बनाने में मदद की और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया।
कला और साहस का प्रतीक: अशोक एक अत्यंत प्रतिभाशाली योद्धा थे जो न केवल सामरिक बल के माध्यम से बल्कि कला और साहस के प्रति भी प्रस्तुत थे। उनके द्वारा बनाए गए सुलेग्राम और अन्य कला के शिल्पकला का प्रमाण उनके ऐतिहासिक गौरव को साबित करता है।
धर्मशास्त्र और धर्म का बदलाव: सम्राट अशोक का अद्भुत धर्मिक सुधार कैसे हुआ, इस पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। उनका जीवन बौद्ध धर्म के प्रति उनकी समर्पणा और उनके द्वारा शुरू किए गए धर्मिक समृद्धि के प्रयासों का प्रतीक है।
कला और संस्कृति के प्रेरणास्रोत: अशोक के समय में कला और संस्कृति में वृद्धि हुई, जो उस युग को साकार करती है। उनकी साहित्यिक और कला समृद्धि ने भारतीय समृद्धि को पुनः उजागर किया।
शांति के अद्भूत राजा: अशोक को 'धर्मशोक' भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने शासनकाल में शांति के लिए अपना पूरा समर्थन दिया। उनका एहसानी मनोबल और विश्वब्रह्माण्ड में शांति की प्रेरणा को दर्शाता है।
सम्राट अशोक का निधन: इतिहास का रहस्य
सम्राट अशोक के जीवन और कारनामों के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध होने के बावजूद, उनके निधन से जुड़े कुछ पहलू अभी भी इतिहास का रहस्य बने हुए हैं। आइए उनकी मृत्यु से जुड़े तथ्यों और अनिश्चितताओं पर गौर करें:
सम्राट अशोक के मृत्यु का समय: अधिकांश इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि सम्राट अशोक का निधन लगभग ईसा पूर्व 232 में हुआ था। उनके शासनकाल की अवधि लगभग 40 वर्षों की मानी जाती है।
सम्राट अशोक के मृत्यु का स्थान: माना जाता है कि सम्राट अशोक का निधन पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) में हुआ था, जो उस समय मौर्य साम्राज्य की राजधानी था।
सम्राट अशोक के मृत्यु का कारण: सम्राट अशोक की मृत्यु के कारणों के बारे में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। प्राचीन स्रोतों में उनके निधन का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है।
सम्राट अशोक के मृत्यु का संभावित कारण:
कुछ इतिहासकारों द्वारा प्रस्तुत संभावित कारणों में शामिल हैं:
वृद्धावस्था: सम्राच अशोक की मृत्यु के समय उनकी आयु लगभग 72 वर्ष रही होगी। प्राचीन काल में यह उम्र काफी अधिक मानी जाती थी।
बीमारी: यह संभव है कि सम्राट अशोक किसी अज्ञात बीमारी से पीड़ित रहे हों, जिसके कारण उनका निधन हुआ हो।
अन्य कारण: कुछ स्रोतों, विशेषकर तिब्बती परंपरा में, तक्षशिला में उनके निधन का उल्लेख मिलता है। हालांकि, इन स्रोतों की सत्यता की पुष्टि के लिए अभी और शोध की आवश्यकता है।