₹3 लाख की नौकरी छोड़कर बने सन्यासी: जानें आईआईटियन बाबा Abhey Singh का सफर

जानें आईआईटी बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग करने वाले अभय सिंह जिन्हें 'आईआईटियन बाबा' के नाम से जाना जाता है, के जीवन की अनोखी कहानी। कैसे उन्होंने विज्ञान और सनातन धर्म को जोड़कर अपनी आत्मिक यात्रा शुरू की।

₹3 लाख की नौकरी छोड़कर बने सन्यासी: जानें आईआईटियन बाबा Abhey Singh का सफर

अगर आईआईटियन बाबा, यानी अभय सिंह के विचारों और उनके जीवन के अनुभवों को एक निष्कर्ष के रूप में देखा जाए, तो उनकी यात्रा आधुनिक विज्ञान और प्राचीन सनातन परंपराओं के बीच एक अनोखा पुल बनाती है।

आईआईटियन बाबा आधुनिकता और आध्यात्म का संगम

उन्होंने आईआईटी जैसे आधुनिक शिक्षण संस्थान से शिक्षा पाकर एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में महारत हासिल की, लेकिन अपनी व्यक्तिगत और आध्यात्मिक खोज के लिए उस आधुनिकता को छोड़कर सनातन धर्म की ओर रुख किया। यह दर्शाता है कि विज्ञान और आध्यात्म एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं।

जीवन के उद्देश्य पर पुनर्विचार

उनकी यह यात्रा यह प्रश्न उठाती है कि क्या धन और भौतिक सफलता जीवन का अंतिम उद्देश्य है? उन्होंने उच्च-भुगतान वाली नौकरी छोड़कर एक साधु का जीवन अपनाया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनके लिए मानसिक और आत्मिक शांति अधिक महत्वपूर्ण थी।

सनातन धर्म की वैज्ञानिक व्याख्या

अभय सिंह ने अपने शोध और विचारों के माध्यम से यह दिखाने की कोशिश की कि सनातन धर्म केवल एक आध्यात्मिक प्रणाली नहीं है, बल्कि यह मानवता, प्रकृति और ब्रह्मांड के बीच संतुलन को समझाने वाली एक वैज्ञानिक प्रणाली भी है। उन्होंने इसे विज्ञान और तर्क के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया।

विचारों की चुनौतीपूर्ण प्रकृति

हालांकि उनके कुछ विचार, जैसे माता-पिता के बारे में उनकी कठोर टिप्पणी, विवादास्पद रहे हैं। यह दिखाता है कि उनके जीवन के अनुभवों ने उनके सोचने के तरीके को गहराई से प्रभावित किया है।

आईआईटियन बाबा, अभय सिंह द्वारा बताए गए प्रमुख बिंदु

1. गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व:

बाबा का कहना है कि सनातन धर्म में गुरु-शिष्य परंपरा आत्मिक उन्नति का आधार है। सही गुरु से ज्ञान प्राप्त करके व्यक्ति अपने जीवन के हर पहलू में संतुलन बना सकता है।

2. भौतिकवाद से दूरी:

उनका मानना है कि आधुनिक समाज में भौतिक चीज़ों की अत्यधिक चाहत ने मानवता को मानसिक अशांति और अवसाद की ओर धकेल दिया है। साधु जीवन अपनाने का मुख्य उद्देश्य इन बंधनों से मुक्त होना था।

3. आत्मज्ञान ही जीवन का उद्देश्य:

उन्होंने कहा कि व्यक्ति का मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना है। यह किसी भी धर्म, जाति या समाज से ऊपर है।

4. प्रकृति से जुड़ाव:

बाबा ने यह भी बताया कि सनातन धर्म का मूल आधार प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर जीना है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण का सम्मान करना हमारी आध्यात्मिक जिम्मेदारी है।

5. संस्कृत और वेदों का महत्व:

उनका कहना है कि संस्कृत भाषा और वेद आधुनिक वैज्ञानिक सोच को नई दिशा दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया को इन ग्रंथों में छिपे ज्ञान को समझने की ज़रूरत है।

6. सत्य की खोज:

बाबा ने कहा कि हर इंसान के जीवन का असली उद्देश्य सत्य की खोज करना है। यह सत्य किसी धर्म या व्यक्ति में नहीं, बल्कि स्वयं के अंदर छिपा है।

7. मानवता का पाठ:

उन्होंने बताया कि धर्म का असली उद्देश्य मानवता की सेवा है। अगर कोई धर्म दूसरों को दुख पहुंचाता है, तो वह धर्म नहीं, केवल अंधविश्वास है।

8. योग और ध्यान का महत्व:

बाबा का मानना है कि योग और ध्यान न केवल आत्मा को शांत करते हैं, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी हैं।

9. दुनिया के प्रति दृष्टिकोण:

बाबा ने कहा कि हमारी समस्याओं की जड़ हमारी दृष्टि है। अगर हम दुनिया को प्रेम और सहानुभूति से देखें, तो जीवन आसान और आनंदमय हो सकता है।

10. जिन्हें आवश्यकता है, उनकी मदद करें:

बाबा ने जोर देकर कहा कि सनातन धर्म का मूल संदेश सेवा है। समाज के जरूरतमंद लोगों की सहायता करना ही सच्चा धर्म है।

इन बिंदुओं से यह स्पष्ट होता है कि बाबा का उद्देश्य केवल धर्म का प्रचार करना नहीं, बल्कि लोगों को आध्यात्मिक और व्यावहारिक जीवन का संतुलन सिखाना है।

निष्कर्ष:

अभय सिंह का जीवन यह साबित करता है कि व्यक्ति अपनी आंतरिक यात्रा में कितने गहरे जा सकता है और कैसे पारंपरिक धर्म और आधुनिक शिक्षा के बीच सामंजस्य स्थापित कर सकता है। उन्होंने यह संदेश दिया है कि सनातन धर्म में वह गहराई और वैज्ञानिकता है जो आधुनिक विश्व के प्रश्नों का उत्तर देने की क्षमता रखती है। उनकी यात्रा भले ही विवादास्पद हो, लेकिन यह समाज को सोचने के लिए प्रेरित करती है कि सच्चा ज्ञान और शांति कहां से प्राप्त होती है।

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