मीरा और चैतन्य महाप्रभु
मीरा एक राजकुमारी थीं, लेकिन उनका मन राजमहल के वैभव में नहीं, कृष्ण भक्ति में रमता था। बचपन से ही कृष्ण के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा जग चुकी थी। राजकुमारी होते हुए भी उन्हें दरबारी रीति-रिवाजों में कोई रुचि नहीं थी, बल्कि हर समय कृष्ण के नाम का गुणगान करती रहती थीं।
एक दिन, मीरा की मुलाकात प्रसिद्ध संत चैतन्य महाप्रभु से हुई। चैतन्य महाप्रभु मीरा की भक्ति से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने मीरा को कृष्ण भक्ति का सच्चा मार्ग दिखाया और कृष्ण प्रेम में लीन रहने का उपदेश दिया।
मीरा ने चैतन्य महाप्रभु के मार्गदर्शन में कृष्ण भक्ति में और भी गहराई से डूब गईं। उनके भजनों में प्रेम, विरह और आत्मसमर्पण की भावनाएँ झलकती थीं। मीरा के भजन न केवल राजमहल में, बल्कि पूरे देश में प्रसिद्ध हो गए।
हालांकि, मीरा की भक्ति का कुछ लोगों को विरोध भी सहना पड़ा। उन्हें दरबार छोड़ने और कृष्ण भक्ति में लीन रहने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन मीरा किसी से विचलित नहीं हुईं। उन्होंने अपना सारा जीवन कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया।
मीरा के भजनों में एक खास बात थी। उनकी भाषा सरल थी, लेकिन भाव गहरे थे। उनके भजन जन-मानस को छू लेते थे और सभी को कृष्ण प्रेम की ओर प्रेरित करते थे।
मीरा आज भी भक्ति की अविरल धारा के रूप में जानी जाती हैं। उनके भजन आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं और कृष्ण प्रेम का मार्ग दिखाते हैं।

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