नर नारायण रूप हैं, तू मति जाने देह! जो समझे तो समझ ले, खलक पलक में खेह! कम शब्दों में गहरी बातें

कम शब्दों में गहरी बातें: मनुष्य केवल शरीर नहीं, बल्कि नारायण का रूप है। 'नर नारायण रूप हैं, तू मति जाने देह' दोहे का गूढ़ अर्थ जानें और आत्मा, मोक्ष व सनातन सत्य को समझें।

नर नारायण रूप हैं, तू मति जाने देह! जो स...
नर नारायण रूप हैं, तू मति जाने देह! जो स...


भारत की सनातन परंपरा में दार्शनिक और आध्यात्मिक ज्ञान का अनमोल भंडार भक्ति साहित्य और संत वाणियों में मिलता है। इन्हीं में से एक गूढ़ और रहस्यमय वाणी है—

"नर नारायण रूप हैं, तू मति जाने देह।

जो समझे तो समझ ले, खलक पलक में खेह।।"

इस दोहे में गहरी आध्यात्मिक शिक्षा छिपी हुई है। यह मानव शरीर, आत्मा और परमात्मा के संबंध को दर्शाने वाला एक दिव्य संदेश है। आइए इस दोहे के गूढ़ अर्थ को समझने का प्रयास करें।

नर और नारायण में कोई भेद नहीं

  • संस्कृत और वेदों के अनुसार, "नर" का अर्थ मनुष्य होता है और "नारायण" का अर्थ भगवान विष्णु से है, जो संपूर्ण सृष्टि के पालनहार हैं। संतों ने कहा है कि हर मानव के भीतर नारायण अर्थात् ईश्वर का वास है।

"अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ही ब्रह्म हूँ) 

  • उपनिषदों में यह बात स्पष्ट की गई है कि हर जीवात्मा में परमात्मा का अंश विद्यमान है।

जब मनुष्य अपने भीतर के ईश्वर को पहचान लेता है, तो वह स्वयं को सिर्फ देह नहीं, बल्कि दिव्यता का रूप मानने लगता है।

इसलिए कहा गया है—

"नर नारायण रूप हैं, तू मति जाने देह।"

  • अर्थात् तू शरीर को ही सत्य मत मान क्योंकि मनुष्य के भीतर स्वयं नारायण का वास है।

देह नहीं, आत्मा है शाश्वत

  • मनुष्य अक्सर अपने शरीर, रूप-रंग और बाहरी दुनिया के सुखों में इतना उलझ जाता है कि वह अपने असली स्वरूप (आत्मा) को भूल जाता है।

यह शरीर नश्वर है, एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा। लेकिन आत्मा अजर-अमर है।

गीता में श्रीकृष्ण ने भी कहा है—

"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।"

  • जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को छोड़कर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा भी नए शरीर को ग्रहण करती है।

इसलिए, यह आवश्यक है कि मनुष्य अपने शरीर से अधिक अपने आत्मिक उत्थान पर ध्यान दे।

खलक पलक में खेह (संसार नश्वर है)

  • "खलक" का अर्थ संपूर्ण सृष्टि से है और "पलक" का अर्थ पलक झपकने जितना समय। "खेह" का अर्थ राख या मिट्टी से है।

अर्थात् यह पूरी सृष्टि पलक झपकते ही नष्ट हो सकती है।

यह संसार एक क्षण में बदल सकता है, इसलिए इसकी मोह-माया में मत उलझ।

महाभारत में यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा था— "दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?"

युधिष्ठिर ने उत्तर दिया—

"प्रत्येक दिन लोग मरते हैं, फिर भी जीवित व्यक्ति सोचता है कि वह अमर है।"

यही मोह का जाल है, जिससे बाहर निकलकर ही मनुष्य सत्य को जान सकता है।

इस दोहे का आध्यात्मिक सार

  • मनुष्य को केवल शरीर मानने की भूल नहीं करनी चाहिए।
  • आत्मा ही असली पहचान है, जो स्वयं नारायण का अंश है।
  • यह दुनिया क्षणभंगुर है, इसलिए सांसारिक मोह-माया में उलझना व्यर्थ है।
  • आत्मज्ञान ही जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य होना चाहिए।

यदि कोई इस गूढ़ सत्य को समझ ले, तो जीवन और मृत्यु के भय से मुक्त हो सकता है।

निष्कर्ष

"नर नारायण रूप हैं" दोहा हमें यह सिखाता है कि हम केवल यह नश्वर शरीर नहीं, बल्कि अमर आत्मा हैं, जो स्वयं नारायण का अंश है। जो भी इस सत्य को समझ लेता है, वह संसार के मोह से मुक्त होकर आत्मज्ञान की राह पर अग्रसर हो जाता है।

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