चालाक लोमड़ी और चतुर खरगोश
एक जंगल में, एक चतुर खरगोश रहता था। वह जल्दी सो जाता था और जल्दी उठ जाता था, हर सुबह ताजी घास खाने के लिए जल्दी जंगल में निकल जाता था।
एक दिन, जंगल में एक नई लोमड़ी आई। वह बहुत लालची थी और हमेशा शिकार की तलाश में रहती थी। उसने जंगल में खरगोश को देखा और सोचा, "आज का मेरा भोजन तो पक्का है!"
लोमड़ी खरगोश के पास गई और धूर्तता से बोली, "नमस्ते पड़ोसी! आप सुबह इतनी जल्दी क्यों निकल रहे हैं?"
चतुर खरगोश की चतुराई
खरगोश उसके इरादों को जानता है लेकिन वह डरता नहीं है। खरगोश लोमड़ी को बिना डरे शांति से जवाब देता है, "नमस्ते लोमड़ी जी, मैं राजा के महल में काम करता हूं। मुझे आज जल्दी महल पहुंचना है।"
लोमड़ी को शक हुआ, "महल में? लेकिन आप एक खरगोश हैं, महल में आप क्या काम करते हैं?"
खरगोश ने जल्दी से जवाब दिया, "मैं राजा का अलार्म घड़ी हूं! मैं हर सुबह तुरही बजाकर राजा को जगाता हूं।"
लोमड़ी उसकी बातों पर विश्वास कर बैठी। उसकी आँखों में लालच चमक उठी। उसने सोचा, "अगर यह खरगोश राजा के महल जाता है, तो वहां जरूर बहुत स्वादिष्ट भोजन मिलता होगा। मैं इसका पीछा करूंगी और महल में घुसकर खाने का मजा लूंगी!"
खरगोश जंगल से निकलने का नाटक करता हुआ आगे बढ़ा। लोमड़ी उसका पीछा करने लगी। वे जंगल से निकलकर एक नदी के किनारे पहुंचे।
खरगोश नदी के किनारे खड़ा हो गया और बोला, "अरे लोमड़ी जी, जल्दी आओ, नदी पार करने में मेरी मदद करो!"
लोमड़ी हैरान हुई, "नदी पार करने में तुम्हारी मदद? तुम तो खरगोश हो, तैरना तो तुम्हें आता ही होगा!"
खरगोश ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं अलार्म घड़ी हूं मुझे तैरना आता है! तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ, मैं तुम्हें नदी के पार ले जाऊंगा।"
लालच में अंधी लोमड़ी
लोमड़ी मूर्खतापूर्वक खरगोश की पीठ पर बैठ गई। जैसे ही वह बीच नदी में पहुंची, खरगोश जोर से बोला, "अलार्म बज रहा है! टाइम हो गया!"
यह सुनकर लोमड़ी घबरा गई और पानी में गिर गई। लोमड़ी गुस्से से बोली, "तुमने मुझे धोखा दिया!"
खरगोश तैरकर वापस किनारे पर आ गया और खरगोश ने हंसते हुए कहा, "मैं कोई अलार्म घड़ी नहीं हूं। मैं एक चतुर खरगोश हूं, जो लालची लोमड़ियों से बचना जानता हूं!"
लोमड़ी नदी में डूब गई और खरगोश खुशी-खुशी अपने घर लौट आया।

Comments (0)