हार मानने वालों के लिए नहीं, हौसलों को बुलंद करने वाली सच्ची कहानी! Motivational Hindi Short Story

कभी ज़िंदगी इतनी मुश्किलें खड़ी कर देती है कि हार मानने का ही मन करता है. लगता है जैसे आगे बढ़ने की कोई राह नहीं बची. लेकिन दोस्तों, ऐसे ही वक़्त ज़िंदगी हमें असली हीरो दिखाती है.

हार मानने वालों के लिए नहीं, हौसलों को ब...

हार मानने वालों के लिए नहीं, हौसलों को बुलंद करने वाली सच्ची कहानी!

वो लोग जो हार नहीं मानते, जो गिरकर भी संभलते हैं और अपनी कहानी को कामयाबी की मिसाल बना देते हैं. आज मैं आपको ऐसी ही एक सच्ची कहानी सुनाता हूँ, जो आपको हिम्मत देगी और ये जज्बा जगाएगी कि आप भी कुछ भी कर सकते हैं.

 अरुणिमा सिन्हा (Arunima Sinha) की कहानी

अरुणिमा एक नेशनल लेवल वाली वॉलीबॉल खिलाड़ी थीं. मगर साल 2011 में उनके साथ एक हादसा हुआ. ट्रेन में लूटपाट के दौरान उन्हें धक्का दे दिया गया, जिसकी वजह से उनके पैर ट्रेन के नीचे आ गए. अस्पताल में डॉक्टरों को उनका एक पैर पूरी तरह से काटना पड़ा. ये हादसा किसी की भी ज़िंदगी तोड़ सकता था. पर अरुणिमा ने हार नहीं मानी. अस्पताल के बिस्तर पर ही उन्होंने ठान लिया कि वो इस हादसे को अपनी कमज़ोरी नहीं बल्कि चुनौती बनाएंगी.

उन्होंने कृत्रिम पैर लगवाया और फिर शुरू हुआ उनकी एक नई पहाड़ चढ़ने की जद्दोजहद. साल 2013 में माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) फतह करने वाली दुनिया की पहली विकलांग महिला बनीं अरुणिमा सिन्हा. इसके बाद उन्होंने कई और ऊंची चोटियाँ भी फतह कीं.

अरुणिमा सिन्हा की कहानी हमें ये सीख देती है कि ज़िंदगी में मुश्किलें तो आती ही रहती हैं. फर्क सिर्फ इतना होता है कि हम उन मुश्किलों के आगे घुटने टेक देते हैं या फिर उन्हें पार करने की हिम्मत जुटाते हैं. अरुणिमा की कहानी हमें जुनून की ताकत दिखाती है. ये बताती है कि अगर आप सच में ठान लें तो कुछ भी हासिल कर सकते हैं.

तो दोस्तों, आप भी अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए अरुणिमा सिन्हा से प्रेरणा लीजिए. गिरने से घबराइए मत, हर बार ज़ोरों से उठिए और अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते रहिए. याद रखिए, "हार मानने वालों को कभी जीत नहीं मिलती."

हार से हैरानी नहीं, हौसलों से है कहानी

अरुणिमा सिन्हा की कहानी तो सिर्फ एक मिसाल है. ज़िंदगी ऐसे अनगिनत उदाहरणों से भरी पड़ी है, जहां लोगों ने हार का सामना किया है, लेकिन हौसला नहीं खोया है.

इसी तरह निकोलस वुजिसिक को याद करें, जो जन्म से ही बिना हाथों और पैरों के पैदा हुए थे. मगर उन्होंने खुद को कभी कमज़ोर नहीं माना. आज निक मोटिवेशनल स्पीकर हैं और दुनियाभर में लोगों को हौसला देते हैं.

ये कहानियां हमें ये यकीन दिलाती हैं कि शारीरिक कमज़ोरियां सफलता पाने में रुकावट नहीं बन सकतीं. ज़रूरत है तो बस दृढ़ इच्छाशक्ति और लगातार मेहनत की.

कई बार असफलताएं भी हमें सिखाती हैं. हमें ये बताती हैं कि हम कहां गलती कर रहे हैं और हमें कहां सुधार करने की ज़रूरत है. असफलता हमें मजबूत बनाती है और अगली बार जीतने का जज़्बा जगाती है.

तो दोस्तों, अगर आप किसी मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं, हार मानने का ख्याल भी न आने दें. ये वक्त है अपने अंदर के जुनून को जगाने का. खुद को हर दिन थोड़ा और पुश करें. हर रोज़ सीखें और खुद को बेहतर बनाएं. याद रखिए, सफलता एक मंजिल नहीं, बल्कि एक सफर है. इस सफर में कभी-कभी रास्ते बदलने पड़ते हैं, कभी ठहरना पड़ता है, लेकिन कभी भी हार नहीं माननी चाहिए.

आप अपने सपनों को हकीकत में बदल सकते हैं, बस इसके लिए हौसलों को बुलंद रखना होगा.

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