सोने का कंगन - बेताल की कहानी और राजा विक्रम का फैसला
राजा विक्रम आदित्य एक न्यायप्रिय शासक थे. हर रात बेताल उन्हें एक कहानी सुनाता और उसमें से कोई रहस्य निकालकर उसका जवाब मांगता था. एक ऐसी ही रात, बेताल ने कहानी सुनाई:
बेताल की कहानी:
एक गाँव में दो सहेलियाँ रहती थीं - शीला और मंजू. दोनों एक-दूसरे के घर आती-जाती थीं और उनके बीच गहरी दोस्ती थी. एक दिन, शीला को उपहार में एक सुंदर सोने का कंगन मिला. वो कंगन पहनकर बहुत खुश थी और उसने तुरंत अपनी सहेली मंजू को दिखाया.
मंजू कंगन देखते ही मोहित हो गई. वो भी वैसा ही कंगन चाहती थी. कुछ दिनों बाद, शीला का कंगन अचानक गायब हो गया. उसने हर जगह ढूंढा लेकिन कहीं नहीं मिला. शक की सुई मंजू पर गई क्योंकि सिर्फ वही कंगन देखने आई थी. शीला ने राजा के दरबार में चोरी की शिकायत दर्ज कराई और मंजू को चोर बताया.
बेताल का सवाल:
क्या मंजू पर चोरी का इल्जाम लगाना सही है? सिर्फ इसलिए कि उसने कंगन देखा था? आपके हिसाब से, इस मामले में राजा को क्या फैसला सुनाना चाहिए?
राजा विक्रम का जवाब और सीख
बेताल की कहानी सुनकर, राजा विक्रम ने कुछ सोचा और फिर जवाब दिया, "सिर्फ इतने सबूतों के आधार पर मंजू को चोर करार देना जल्दबाजी होगी. हो सकता है कि कंगन किसी और ने चुराया हो. इस मामले में राजा को दोनों सहेलियों से अलग-अलग पूछताछ करनी चाहिए. साथ ही, गांव के अन्य लोगों से भी पूछताछ करनी चाहिए कि क्या किसी ने कुछ संदिग्ध देखा है. जांच-पड़ताल के बाद ही सही फैसला लिया जा सकता है."
राजा विक्रम के जवाब से बेताल खुश हुआ. इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि:
- किसी पर भी जल्दबाजी में इल्जाम नहीं लगाना चाहिए.
- फैसला लेने से पहले ठीक से जांच-पड़ताल करनी चाहिए.
- सच्ची दोस्ती कभी किसी की चीज को पाने की लालच से नहीं टूटती.

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