अकबर-बीरबल की कहानी: एक आम के पेड़ और दो मालिकों की सीख | Akbar-Birbal Story in Hindi
अकबर-बीरबल की प्रसिद्ध कहानी जहाँ एक आम के पेड़ को लेकर दो पड़ोसियों के बीच विवाद होता है। बीरबल की चतुराई से सच्चाई का पता चलता है। यह कहानी ईमानदारी और मेहनत की सीख देती है। पढ़ें पूरी कहानी हिंदी में।

कहानियाँ Last Update Fri, 21 February 2025, Author Profile Share via
एक बार की बात है। रोज़ की तरह बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे हुए थे और प्रजा की समस्याएँ सुन रहे थे। लोग अपनी-अपनी परेशानियाँ लेकर बादशाह के सामने हाज़िर हो रहे थे। तभी रामदीन और माधव नाम के दो पड़ोसी भी अपनी समस्या लेकर दरबार में पहुँचे। दोनों के बीच झगड़े की वजह था उनके घरों के बीच खड़ा एक आम का पेड़, जो फलों से लदा हुआ था। दोनों इस पेड़ पर अपना हक जता रहे थे। रामदीन कह रहा था कि पेड़ उसका है और माधव झूठ बोल रहा है, जबकि माधव का दावा था कि वही पेड़ का असली मालिक है और रामदीन झूठा है।
यह मामला बहुत उलझा हुआ था। दोनों में से कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था। बादशाह अकबर ने दोनों की बातें ध्यान से सुनीं और फिर इस जटिल समस्या को सुलझाने का जिम्मा अपने नवरत्नों में से एक, बीरबल को सौंप दिया। बीरबल ने मामले को समझने के लिए एक चालाक योजना बनाई।
उसी शाम, बीरबल ने दो सिपाहियों को बुलाया और उन्हें रामदीन के घर भेजा। उन्होंने सिपाहियों से कहा कि वे रामदीन को बताएँ कि उसके आम के पेड़ से आम चोरी हो रहे हैं। फिर उन्होंने दो अन्य सिपाहियों को माधव के घर भेजा और उन्हें भी यही संदेश देने को कहा। साथ ही, बीरबल ने सिपाहियों को यह निर्देश दिया कि वे दोनों के घर के पीछे छिपकर यह देखें कि रामदीन और माधव क्या करते हैं।
जब सिपाही रामदीन के घर पहुँचे, तो उन्हें पता चला कि वह घर पर नहीं था। उन्होंने यह संदेश उसकी पत्नी को दिया। जब रामदीन घर लौटा, तो उसकी पत्नी ने उसे आम चोरी होने की बात बताई। यह सुनकर रामदीन बिना देर किए पेड़ की ओर दौड़ पड़ा। उसकी पत्नी ने पीछे से आवाज़ लगाई, "अरे, खाना तो खा लो!" लेकिन रामदीन ने जवाब दिया, "खाना तो कभी भी खाया जा सकता है, लेकिन अगर आज आम चोरी हो गए, तो मेरी साल भर की मेहनत बर्बाद हो जाएगी।"
वहीं, जब सिपाही माधव के घर पहुँचे, तो उन्होंने यह संदेश उसकी पत्नी को दिया। जब माधव घर आया, तो उसकी पत्नी ने उसे आम चोरी होने की बात बताई। यह सुनकर माधव ने कहा, "अरे, खाना तो खिला दो। आम के चक्कर में अब क्या परेशान होना? वैसे भी, यह पेड़ मेरा नहीं है। चोरी हो रही है तो होने दो। सुबह देखेंगे।" यह कहकर वह आराम से खाना खाने लगा।
सिपाहियों ने दोनों के व्यवहार को ग़ौर से देखा और अगले दिन दरबार में जाकर बीरबल को सारी बात बताई। अगले दिन, जब रामदीन और माधव दरबार में पहुँचे, तो बीरबल ने बादशाह अकबर से कहा, "जहाँपनाह, इस पेड़ को कटवा देना चाहिए। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।" बादशाह ने दोनों से इस बारे में पूछा। माधव ने कहा, "हुजूर, आपकी इच्छा। मैं आपके फैसले को स्वीकार करूँगा।" लेकिन रामदीन ने कहा, "महाराज, मैंने सालों से इस पेड़ की देखभाल की है। कृपया इसे न कटवाएँ।"
बीरबल ने मुस्कुराते हुए बादशाह को सिपाहियों की रिपोर्ट सुनाई और कहा, "हुजूर, रामदीन ही पेड़ का असली मालिक है, क्योंकि उसे पेड़ की चिंता है। माधव झूठ बोल रहा है।" बादशाह ने रामदीन को पेड़ का मालिकाना हक दे दिया और माधव को झूठ बोलने के लिए सज़ा सुनाई।
कहानी से सीख:
बिना मेहनत किसी दूसरे की चीज़ पर दावा करने का अंजाम हमेशा बुरा होता है। ईमानदारी और मेहनत ही सफलता की कुंजी है।