चाय वाली दादी
दिल्ली की पुरानी गलियों में, एक छोटी सी चाय की दुकान थी। इसे चलाती थीं दादी अमीना। दादी अमीना कोई साधारण चाय वाली नहीं थीं। उनकी चाय की खुशबू ही दूर से लोगों को अपनी ओर खींच लेती थी। लेकिन उनकी दुकान सिर्फ चाय के लिए ही नहीं, बल्कि लोगों के लिए मेल-जोल का चौराहा भी बन गई थी.
सुबह के वक्त ऑफिस जाने वाले लोग दादी की चाय पीकर ही दिन की शुरुआत करते थे। शाम को दुकान पर ऑफिस की थकान मिटाने और गप्पे शॉप करने का सिलसिला चलता रहता था। दादी अमीना हर किसी की कहानी सुनती थीं, उनकी परेशानियों में हिम्मत देती थीं और खुशियों में उनके साथ हंसती थीं।
मदद का हाथ
एक रोज़ दुकान पर एक युवा लड़का आया। वह बेरोज़गार था और हताश दिख रहा था। दादी अमीना ने उसकी परेशानी पूछी। लड़के ने बताया कि वह कंप्यूटर कोर्स करना चाहता है, लेकिन उसके पास पैसे नहीं हैं। दादी ने उसे हिम्मत दी और अगले दिन दुकान पर बुलाया।
दूसरे दिन लड़का आया तो दादी अमीना ने उसे एक लिफाफा दिया। लिफाफे में कंप्यूटर कोर्स की फीस के लिए पैसे थे। दादी ने बताया कि दुकान पर आने वाले लोगों ने मिलकर उसकी मदद की है। लड़का दादी के पैर छूना चाहता था, लेकिन दादी ने उसे मना कर दिया। उन्होंने सिर्फ इतना कहा, "बेटा, आगे बढ़ो और कामयाब हो। ज़रूरतमंद की मदद करना मत भूलना।"
लड़का कंप्यूटर कोर्स करने गया और अच्छी नौकरी पाने में सफल रहा। कुछ समय बाद वह वापस दुकान पर आया। अब वह दूसरों की तरह दादी की चाय पीने नहीं आया था, बल्कि एक और लिफाफा लेकर आया था। लिफाफे में जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई के लिए दान था। दादी अमीना की आँखें भर आईं। उनकी छोटी सी चाय की दुकान ने एक और जिंदगी बदल दी थी.

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