छोटी सी तारा, बड़े इंजीनियर के सपने
तारा को यह रास्ता आसान नहीं मिला था। इंजीनियर बनने का सपना उसके बचपन से ही था, पर हर दिन उसे संघर्ष ही दिखता था। स्कूल में गणित का हर जटिल सवाल उसे घंटों उलझा देता था। रातें कड़ी मेहनत में कटती थीं, फिर भी क्लास में टॉप करने वाले छात्रों की सूची में उसका नाम नहीं आता था।
उसके सहपाठी, जो आसानी से समीकरण हल कर लेते थे, अक्सर उसे चिढ़ाते थे। कभी-कभी तारा हार मानने वाली थी, उसे लगता था कि शायद इंजीनियरिंग उसके लिए नहीं बनी। मगर तभी उसकी दादी माँ याद आतीं, जिन्होंने तारा को छोटी सी उम्र में पुल और मशीनों के बारे में कहानियां सुनाई थीं। दादी माँ की आवाज उसे कहती, "तारा, इंजीनियर वो होते हैं जो सपनों को हकीकत बनाते हैं। मुश्किल है, मगर नामुमकिन नहीं।"
तारा ने हार नहीं मानी। उसने अपनी कमजोरियों पर काम किया, हर मुश्किल सवाल को हल करने की ठानी। टीचरों से मदद मांगी, देर रात तक अभ्यास किया। धीरे-धीरे चीजें बदलने लगीं। गणित का जंगल अब उसे डराता नहीं था, बल्कि चुनौती देता था। जल्द ही तारा कक्षा में सबसे तेज छात्राओं में से एक मानी जाने लगी।
पर असली चुनौती कॉलेज में थी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई कठिन थी, प्रोजेक्ट्स जटिल थे। तारा अक्सर हतोत्साहित हो जाती थी, लेकीन वह जानती थी कि उसने इतनी दूर का सफर तय किया है, अब रुकना नहीं है। उसने अपने सहपाठियों के साथ मिलकर काम करना सीखा, टीम वर्क की ताकत को समझा। रातों को कम्प्यूटर स्क्रीन के सामने बिताईं, कोडिंग की भाषा सीखी। धीरे-धीरे असफलताएँ सीख में बदल गईं और सफलताएँ उसकी मेहनत का फल बनकर सामने आईं।
आखिरकार वह दिन आया, जिसका तारा को सालों से इंतजार था। ग्रेजुएशन डे! गर्व से उसने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। कॉलेज के टॉपर्स में उसका नाम था। अब वह एक इंजीनियर थी, सपनों को हकीकत में बदलने वाली जादूगरनी।
तारा की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह कहानी बताती है कि मेहनत और लगन से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। रास्ते में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, हार नहीं माननी चाहिए। सफलता कभी भी आसान नहीं होती, लेकिन यह निश्चित रूप से संभव है।